आदरणीय अध्यक्ष जी,
सबसे पहले मैं राष्ट्रपति जी के अभिभाषण पर धन्यवाद करता हूं और ये मेरा सौभाग्य रहा है कि मुझे पहले भी कई बार राष्ट्रपति जी के अभिभाषण पर धन्यवाद करने का अवसर मिला है। लेकिन इस बार मैं धन्यवाद के साथ-साथ राष्ट्रपति महोदया जी का अभिनंदन भी करना चाहता हूं। अपनी विजनरी भाषण में राष्ट्रपति जी ने हम सबका और करोड़ो देशवासियों का मार्गदर्शन किया है। गणतंत्र के मुखिया रूप में उनकी उपस्थिति ऐतिहासिक भी है और देश की कोटि-कोटि बहन-बेटियों के लिए बहुत बड़ा प्रेरणा का अवसर भी है।
आदरणीय राष्ट्रपति महोदया ने आदिवासी समाज का गौरव तो बढ़ाया ही है लेकिन आज आजादी के इतने सालों के बाद आदिवासी समाज में जो गौरव की अनुभूति हो रही है, उनका जो आत्मविश्वास बढ़ा है और इसके लिए ये सदन भी और देश भी उनका आभारी होगा। राष्ट्रपति जी के भाषण में ‘संकल्प से सिद्धि तक यात्रा का बहुत बढ़िया तरीके से एक खाका खींचा गया एक प्रकार से देश को अकाउंट भी दिया गया, इंस्पिरेशन भी दिया गया है।
आदरणीय अध्यक्ष जी यहां पर सभी माननीय सदस्यों ने इस चर्चा में हिस्सा लिया, हर किसी ने अपने-अपने आंकड़े दिए, अपने-अपने तर्क दिए और अपनी रुचि, प्रवृत्ति के अनुसार सबने अपनी बातें रखी और जब इन बातों को गौर से सुनते हैं, उसे समझने का जब प्रयास करते हैं तो ये भी ध्यान में आता है कि किसकी कितनी क्षमता है, किसकी कितनी योग्यता है, किसकी कितनी समझ है और किसका क्या इरादा है। ये सारी बातें प्रकट होती ही हैं। और देश भली-भांति तरीके से उसका मूल्यांकन भी करता है। मैं चर्चा में शामिल सभी माननीय सदस्यों का ह्दय से आभार व्यक्त करता हूं। लेकिन मैं देख रहा था कल कुछ लोगों के भाषण के बाद पूरा Ecosystem, समर्थक उछल रहा था और कुछ लोग तो खुश होकर के कह रहे थे, ये हुई न बात। बड़ा शायद नींद भी अच्छी आई होगी, शायद आज उठ भी नहीं पाए होंगे। और ऐसे लोगों के लिए कहा गया है, बहुत अच्छे ढंग से कहा गया है-
ये कह-कहकर हम दिल को बहला रहे हैं,
ये कह-कहकर के हम दिल को बहला रहे हैं, वो अब चल चुके हैं,
वो अब चल चुके हैं, वो अब आ रहे हैं।
माननीय अध्यक्ष जी,
जब राष्ट्रपति जी का भाषण हो रहा था, कुछ लोग कन्नी भी काट गए और एक बड़े नेता महामहिम राष्ट्रपति जी का अपमान भी कर चुके हैं। जनजातीय समुदाय के प्रति नफरत भी दिखाई दी है और हमारे जनजातीय समाज के प्रति उनकी सोच क्या है। लेकिन जब इस प्रकार की बातें टीवी के सामने कही गई तो भीतर पड़ा हुआ जो नफरत का भाव था जो सच वो बाहर आकर ही रहा गया। ये खुशी है, ठीक है बाद में चिट्ठी लिखकर के बचने की कोशिश तो की गई है।
माननीय अध्यक्ष जी।
जब राष्ट्रपति जी के भाषण पर चर्चा मैं सुन रहा था, तो मुझे लगा कि बहुत सी बातों को मौन रहकर भी स्वीकार किया गया है। यानी एक प्रकार से सबके भाषण में सुनता था, तब लगा कि राष्ट्रपति जी के भाषण के प्रति किसी को एतराज नहीं है, किसी ने उसकी आलोचना नहीं की। भाषण की हर बात, अब देखिए क्या कहा है राष्ट्रपति जी ने मैं उन्हीं के शब्द को क्वोट करता हूं। राष्ट्रपति जी ने अपने भाषण में कहा था, जो भारत कभी अपनी अधिकांश समस्याओं के समाधान के लिए दूसरों पर निर्भर था, वही आज दुनिया की समस्याओं के समाधान का माध्यम बन रहा है। राष्ट्रपति जी ने यह भी कहा था, जिन मूल सुविधाओं के लिए देश की एक बड़ी आबादी ने दशकों तक इंतजार किया, वे इन वर्षों में उसे मिली है। बड़े-बड़े घोटालों, सरकारी योजनाओं में भ्रष्ट्राचार की जिन समस्याओं से देश मुक्ति चाहता था, वह मुक्ति अब देश को मिल रही है। पॉलिसी-पैरालिसिस की चर्चा से बाहर आकर आज देश और देश की पहचान, तेज विकास और दूरगामी दृष्टि से लिए गए फैसलों के लिए हो रही है। ये पैराग्राफ जो मैं पढ़ रहा हूं वो राष्ट्रपति जी भाषण के पैराग्राफ को मैं क्वोट कर रहा हूं। और मुझे आशंका था कि ऐसी-ऐसी बातों पर यहां जरूर एतराज करने वाले तो कुछ लोग निकलेंगे, वो विरोध करेंगे कि ऐसा कैसे बोल सकते हैं राष्ट्रपति जी। लेकिन मुझे खुशी है किसी ने विरोध नहीं किया सबने स्वीकार किया, सबने स्वीकार किया। और माननीय अध्यक्ष जी मैं 140 करोड़ देशवासियों का आभारी हूं कि सबके प्रयास के परिणाम आज इन सारी बातों को पूरे सदन में स्वीकृति मिली है। इससे बड़ा गौरव का विषय क्या होगा।
आदरणीय अध्यक्ष जी। सदन में हंसी-मजाक, टीका-टिप्पणी, नोक-झोंक ये तो होता रहता है। लेकिन ये नहीं भूलना चाहिए कि आज राष्ट्र के रूप में गौरवपूर्ण अवसर हमारे सामने खड़े हैं, गौरव के क्षण हम जी रहे हैं। राष्ट्रपति जी के पूरे भाषण में जो बातें हैं वो 140 करोड़ देशवासियों के सेलिब्रेशन का अवसर है, देश ने सेलिब्रेट किया है।
माननीय अध्यक्ष जी। 100 साल में आई हुई ये भयंकर बीमारी, महामारी दूसरी तरफ युद्ध की स्थिति, बंटा हुआ विश्व इस स्थिति में भी, इस संकट के माहौल में भी देश को जिस प्रकार से संभाला गया है, देश जिस प्रकार से संभला है इससे पूरा देश आत्मविश्वास से भर रहा है, गौरव से भर रहा है।
आदरणीय अध्यक्ष जी। चुनौतियों के बिना जीवन नहीं होता है, चुनौतियां तो आती हैं। लेकिन चुनौतियों से ज्यादा सामर्थ्यवान है 140 करोड़ देशवासियों का जज्बा। 140 करोड़ देशवासियों का सामर्थ्य चुनौतियों से भी ज्यादा मजबूत है, बड़ा है और सामर्थ्य से भरा हुआ है। इतनी बड़ी भयंकर महामारी, बंटा हुआ विश्व युद्ध के कारण हो रहे विनाश, अनेकों देशों में अस्थिरता का माहौल है। कई देशों में भीषण महंगाई है, बेरोजगारी, खाने-पीने का संकट और हमारे अड़ोस-पड़ोस में भी जिस प्रकार से हालत बनी हुई है, ऐसी स्थिति में माननीय अध्यक्ष जी कौन हिन्दुस्तानी इस बात पर गर्व नहीं करेगा कि ऐसे समय में भी देश दुनिया की 5वीं बड़ी अर्थव्यवस्था बना है। आज पूरे विश्व में भारत को लेकर के पॉजिटिविटी है, एक आशा है, भरोसा है। और माननीय अध्यक्ष जी ये भी खुशी की बात है कि आज भारत को विश्व के समृद्ध देश ऐसे जी-20 समूह की अध्यक्षता का अवसर भी मिला है।
ये देश के लिए गर्व की बात है। 140 करोड़ देशवासियों के लिए गौरव की बात है। लेकिन मुझे लगता है, पहले मुझे नहीं लगता था, लेकिन अभी लग रहा है शायद इससे भी कुछ लोगों को दुख हो रहा है। 140 करोड़ देशवासियों में किसी को दुख नहीं हो सकता है। वो आत्मनिरीक्षण करें वो कौन लोग हैं जिसको इसका भी दु:ख हो रहा है।
माननीय अध्यक्ष जी,
आज दुनिया की हर विश्वसनीय संस्था, सारे एक्सपर्ट्स जो वैश्विक प्रभावों को बहुत गहराई से अध्ययन करते हैं। जो भविष्य का अच्छे से अनुमान भी लगा सकते हैं। उन सबको आज भारत के प्रति बहुत आशा है, विश्वास है और बहुत एक मात्रा में उमंग भी है। और आखिर ये सब क्यों? ऐसे ही तो नहीं है। आज पूरी दुनिया भारत की तरफ इस प्रकार से बड़ी आशा की नजरों से क्यों देख रही है। इसके पीछे कारण है। इसका उत्तर छिपा है भारत में आई स्थिरता में, भारत की वैश्विक साख में, भारत के बढ़ते सामर्थ्य में और भारत में बन रही नई संभावनाओं में है।
माननीय अध्यक्ष जी,
हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में जो बातें हो रही हैं। उसी को मैं अगर शब्दबद्ध करूं और कुछ बातें उदाहरण से समझाने की कोशिश करुं। अब आप देखिए भारत में एक दो तीन दशक अस्थिरता के रहे हैं। आज स्थिरता है, political stability है, Stable Government भी है और Decisive Government है, और उसका भरोसा स्वाभाविक होता है। एक निर्णायक सरकार, एक पूर्ण बहुमत से चलने वाली सरकार वो राष्ट्र हित में फैसले लेने का सामर्थ्य रखती है। और ये वो सरकार है Reform out of compulsion नहीं Reform out of conviction हो रही है। और हम इस मार्ग पर हटने वाले नहीं है चलते रहेंगे। देश को समय की मांग के अनुसार जो चाहिए वो देते रहेंगे।
माननीय अध्यक्ष जी,
एक और उदाहरण की तरफ मैं जाना चाहूंगा। इस कोरोना काल में मेड इन इंडिया वैक्सीन तैयार हुई। भारत ने दुनिया का सबसे बड़ा वैक्सीनेशन अभियान चलाया और इतना ही नहीं अपने करोड़ों नागरिकों को मुफ्त वैक्सीन के टीके लगाए। इतना ही नहीं 150 से ज्यादा देशों को इस संकट के समय हमने जहां जरूरत थी, वहां दवाई पहुंचाई, जहां जरूरत थी, वहां वैक्सीन पहुंचाई। और आज विश्व के कई देश हैं, जो भारत के विषय में इस बात पर बड़े गौरव से विश्व के मंच पर धन्यवाद करते हैं, भारत का गौरव गान करते हैं। उसी प्रकार से तीसरे एक पहलू की तरफ ध्यान दें। इसी संकट काल में आज भारत का digital infrastructure जिस तेजी से digital infrastructure ने अपनी ताकत दिखाई है। एक आधुनिकता की तरफ बदलाव किया है। पूरा विश्व इसका अध्ययन कर रहा है। मैं पिछले दिनों जी-20 समिट में बाली में था। Digital India की चारों तरफ वाहवाही हो रही थी। और बहुत curiosity थी कि देश कैसे कर रहा है? कोरोना काल में दुनिया के बड़े-बड़े देश, समृद्ध देश अपने नागरिकों को आर्थिक मदद पहुंचाना चाहते थे। नोटें छापते थे, बांटते थे, लेकिन बांट नहीं पाते थे। ये देश है जो एक फ्रिक्शन ऑफ सेकंड में लाखों करोड़ों रुपये देशवासियों के खाते में जमा करवा देता है। हजारों करोड़ रुपये ट्रांसफर हो जाते हैं। एक समय था, छोटी-छोटी टेक्नोलॉजी के लिए देश तरसता था। आज देश में बहुत बड़ा फर्क महसूस हो रहा है। टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में देश बड़ी ताकत के साथ आगे बढ़ रहा है। CoWin दुनिया के लोग अपने वैक्सीनेशन का सर्टिफिकेट भी दे नहीं पाते थे जी। आज वैक्सीन का हमारे मोबाइल फोन पर हमारा सर्टिफिकेट दूसरी सेकंड पर अवेलेबल है। ये ताकत हमनें दिखाई है।
माननीय अध्यक्ष जी,
भारत में नई संभावनाएं हैं। दुनिया को सशक्त value और supply chain उसमें आज पूरी दुनिया ने इस कोरोना कालखंड ने supply chain के मुद्दे पर दुनिया को हिला कर रख दिया है। आज भारत उस कमी को पूरा करने की ताकत के साथ आगे बढ़ रहा है। कईयों को ये बात समझने में बहुत देर लग जाएगी, अध्यक्ष जी। भारत आज इसी दिशा में एक manufacturing hub के रूप में उभर रहा है और दुनिया भारत की इस समृद्धि में अपनी समृद्धि देख रही है।
माननीय अध्यक्ष जी,
निराशा में डूबे हुए कुछ लोग इस देश की प्रगति को स्वीकार ही नहीं कर पा रहे हैं। उन्हें भारत के लोगों की उपलब्धियां नहीं दिखती है। अरे 140 करोड़ देशवासियों के पुरुषार्थों पर आस्था का परिणाम है, जिसके कारण आज दुनिया में डंका बजना शुरू हुआ है। उन्हें भारत के लोगों के पुरुषार्थ परिश्रम से प्राप्त उपलब्धियां उनको नजर नहीं आ रही है।
माननीय अध्यक्ष जी,
पिछले 9 वर्ष में भारत में 90 हजार स्टार्टअप्स और आज स्टार्टअप्स की दुनिया में हम दुनिया में तीसरे नंबर पर पहुंच चुके हैं। एक बहुत बड़ा स्टार्टअप इकोसिस्टम आज देश के Tier 2, Tier 3 cities में भी पहुंच चुका है। हिन्दुस्तान के हर कोने में पहुंचा है। भारत के युवा सामर्थ्य की पहचान बनता जा रहा है।
माननीय अध्यक्ष जी,
इतने कम समय में और कोरोना के विकट कालखंड में 108 यूनिकॉर्न बने हैं। और एक यूनिकॉर्न का मतलब होता है, उसकी वैल्यू 6-7 हजार करोड़ से ज्यादा होती है। ये इस देश के नौजवानों ने करके दिखाया है।
माननीय अध्यक्ष जी,
आज भारत दुनिया में mobile manufacturing में दुनिया में दूसरे बड़ा देश बन गया है। घरेलू विमान यात्री domestic Air Traffic पर हैं। आज विश्व में हम तीसरे नंबर पर पहुंच चुके हैं। Energy Consumption को प्रगति का एक मानदंड माना जाता है। आज भारत Energy consumption में दुनिया में consumer के रूप में तीसरे नंबर पर हम पहुंच चुके हैं। Renewable Energy की capacity में हम दुनिया में चौथे नंबर पर पहुंच चुके हैं। स्पोर्ट्स कभी हमारी कोई पूछ नहीं होती थी, कोई पूछता नहीं था। आज स्पोर्ट्स की दुनिया में हर स्तर पर भारत की खिलाड़ी अपना रुतबा दिखा रहे हैं। अपना सामर्थ्य दिखा रहे हैं।
Education समेत हर क्षेत्र में आज भारत आगे बढ़ रहा है। पहली बार माननीय अध्यक्ष जी, गर्व होगा, पहली बार higher education में enrolment वालों की संख्या चार करोड़ से ज्यादा हो गई है। इतना ही नहीं, बेटियों की भी भागीदारी बराबर होती जा रही है। देश में इंजीनियरिंग हो, मेडिकल कॉलेज हो, professional colleges हों उसकी संख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है। स्पोर्ट्स के अंदर भारत का परचम ओलंपिक हो, कॉमनवेल्थ हो, हर जगह पर हमारे बेटे, हमारी बेटियों ने शानदार प्रदर्शन किया है।
माननीय अध्यक्ष जी,
किसी भी भारतीय को ऐसी अनेक बातें मैं गिना सकता हूँ। राष्ट्रपति जी ने अपने भाषण में कई बातें कही हैं। देश में हर स्तर पर, हर क्षेत्र में, हर सोच में, आशा ही आशा नजर आ रही है। एक विश्वास से भरा हुआ देश है। सपने और संकल्प लेकर के चलने वाला देश है। लेकिन यहाँ कुछ लोग ऐसे निराशा में डूबे हैं, काका हाथरसी ने एक बड़ी मजेदार बात कही थी। काका हाथरसी ने कहा था-
‘आगा-पीछा देखकर क्यों होते गमगीन, जैसी जिसकी भावना वैसा दीखे सीन’।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
आखिर ये निराशा भी ऐसी नहीं आई है, इसके पीछे एक कारण है। एक तो जनता का हुकुम, बार-बार हुकुम, लेकिन साथ-साथ इस निराशा के पीछे जो अंतर्मन में पड़ी हुई चीज़ है, जो चैन से सोने नहीं देती है, वो क्या है, पिछले 10 साल में, 2014 के पहले 2004 से 2014, भारत की अर्थव्यवस्था खस्ताहाल हो गई। निराशा नहीं होगी तो क्या होगा? 10 साल में महंगाई डबल डिजिट रही, और इसलिए कुछ अगर अच्छा होता है तो निराशा और उभर करके आती है और जिन्होंने बेरोजगारी दूर करने के वादे किए थे।
माननीय अध्यक्ष जी,
एक बार जंगल में दो नौजवान शिकार करने के लिए गए और वो गाड़ी में अपनी बंदूक-वंदूक नीचे उतार करके थोड़ा टहलने लगे। उन्होंने सोचा कि थोड़ा अभी आगे चलना है तो थोड़ा हाथ-पैर ठीक कर लें। लेकिन गए थे तो बाघ का शिकार करने के लिए और उन्होंने देखा कि आगे जाएंगे तो बाघ मिलेगा। लेकिन हुआ ये कि वहीं पर बाघ दिखाई दिया, अभी नीचे उतरे थे। अपनी गाड़ी में बंदूक-वंदूक वहीं पड़ी थी। बाघ दिखा, अब करें क्या? तो उन्होंने licence दिखाया कि मेरे पास बंदूक का licence है। इन्होंने भी बेरोजगारी दूर करने के नाम पर कानून दिखाया कि कानून बना दिया है जी। अरे देखो, कानून बना दिया है। यही इनके तरीके हैं, पल्ला झाड़ दिया। 2004 से 2014, आजादी के इतिहास में सबसे घोटालों का दशक रहा, सबसे घोटालों का। वही 10 साल, UPA के वो 10 साल, कश्मीर से कन्याकुमारी, भारत के हर कोने में आतंकवादी हमलों का सिलसिला चलता रहा, 10 साल। हर नागरिक असुरक्षित था, चारों तरफ यही सूचना रहती थी कि कोई अंजानी चीज़ को हाथ मत लगाना। अंजानी चीज़ से दूर रहना, वहीं खबरें रहती थी। 10 साल में जम्मू-कश्मीर से लेकर नॉर्थ ईस्ट तक हिंसा ही हिंसा देश उनका शिकार हो गया था। उन 10 साल में, भारत की आवाज ग्लोबल प्लैटफॉर्म पर इतनी कमजोर थी कि दुनिया सुनने तक तैयार नहीं थी।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
इनकी निराशा का कारण ये भी है आज जब देश की क्षमता का परिचय हो रहा है, 140 करोड़ देशवासियों का सामर्थ्य खिल रहा है, खुलकर के सामने आ रहा है। लेकिन देश का सामर्थ्य तो पहले भी था। लेकिन 2004 से लेकर के 2014 तक इन्होंने वो अवसर गंवा दिया। और UPA की पहचान बन गई हर मौके को मुसीबत में पलट दिया। जब technology information का युग बड़ी तेजी से बढ़ रहा था, उछल रहा था, उसी समय ये 2जी में फंसे रहे, मौका मुसीबत में। सिविल न्यूक्लियर डील हुआ, जब सिविल न्यूक्लियर डील की चर्चा थी, तब ये कैश फॉर वोट में फंसे रहे। ये खेल चले।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
2010 में, कॉमनवेल्थ गेम्स हुए, भारत को दुनिया के सामने, भारत के युवा सामर्थ्य को प्रस्तुत करना एक बहुत बड़ा अवसर था। लेकिन फिर मौका मुसीबत में और CWG घोटाले में पूरा देश दुनिया में बदनाम हो गया।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
ऊर्जा का किसी भी देश के विकास में अपना एक महात्म्य होता है। और जब दुनिया में भारत की ऊर्जा शक्ति के उभार की दिशा में चर्चा की जरूरत थी, इस सदी के दूसरे दशक में हिन्दुस्तान की चर्चा ब्लैकआउट के नाते हुई। पूरे विश्व में ब्लैकआउट के वो दिन चर्चा के केंद्र में आ गए। कोयला घोटाला चर्चा में आ गया।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
देश पर इतने आतंकी हमले हुए। 2008 के हमलों को कोई भूल नहीं सकता है। लेकिन आतंकवाद पर सीना तानकर आंख में आंख मिलाकर के हमले करने का सामर्थ्य नहीं था, उसकी चुनौती को चुनौती देने की ताकत नहीं थी और उसके कारण आतंकवादियों के हौसले बुलंद होते गए, और पूरे देश में दस साल तक खून बहता रहा, मेरे देश के निर्दोष लोगों का, वो दिन रहे थे।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
जब एलओसी, एलएसी भारत के सामर्थ्य की ताकत का अवसर रहता था, उस समय डिफेंस डील को ले करके हेलिकॉप्टर घोटाले, और सत्ता को कंट्रोल करने वाले लोगों के नाम उसमें चिह्नित हो गए।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
जब देश के लिए जरूरत थी और निराशा के मूल में ये चीजें पड़ी हुई हैं, सब उभर करके आ रहा है।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
इस बात को हिंदुस्तान हर पल याद रखेगा कि 2014 के पहले का जो दशक था, The Lost Decade के रूप में जाना जाएगा और इस बात को इंकार नहीं कर सकते कि 2030 का जो दशक है, ये India’s Decade है पूरे विश्व के लिए।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
लोकतंत्र में आलोचना का बहुत महत्व मैं मानता हूं। और मैं हमेशा मानता हूं कि भारत जो कि Mother of democracy है, सदियों से हमारे यहां लोकतंत्र हमारी रंगों में पनपा हुआ है। और इसलिए मैं हमेशा मानता हूं कि आलोचना एक प्रकार से लोकतंत्र की मजबूती के लिए, लोकतंत्र के संवर्धन के लिए, लोकतंत्र के स्पिरिट के लिए, आलोचना एक शुद्धि यग्न है। उस रूप में हम आलोचना को देखने वाले हैं। लेकिन दुर्भाग्य से बहुत दिनों से मैं इंतजार कर रहा हूं कोई तो मेहनत करके आएगा, कोई तो एनालिसिस करे तो कोई आलोचना करेगा ताकि देश को कुछ लाभ हो। लेकिन 9 साल आलोचना ने आरोपों में गंवा दिए इन्होंने। सिवाय आरोप, गाली-गलौच, कुछ भी बोल दो, इसके सिवाय कुछ नहीं किया। गलत आरोप और हाल ये चुनाव हार जाओ-ईवीएम खराब, दे दो गाली, चुनाव हार जाओ-चुनाव आयोग को गाली दे दो, क्या तरीका है। अगर कोर्ट में फैसला पक्ष में नहीं आया तो सुप्रीम कोर्ट को गाली दे दो, उसकी आलोचना कर दो।
माननीय अध्यक्ष जी,
अगर भ्रष्टाचार की जांच हो रही है तो जांच एजेंसियों को गाली दो। अगर सेना पराक्रम करे, सेना अपना शौर्य दिखाए और वो narrative देश के जन-जन के अंदर एक नया विश्वास पैदा करें तो सेना की आलोचना करो, सेना को गाली दो, सेना पर आरोप करो।
कभी आर्थिक, देश की प्रगति की खबरें आएं, आर्थिक प्रगति की चर्चा हो, विश्व के सारे संस्थान भारत का आर्थिक गौरवगान करें तो यहां से निकलो, आरबीआई को गाली दो, भारत के आर्थिक संस्थानों को गाली दो।
माननीय अध्यक्ष जी,
पिछले नौ साल हमने देखा है कुछ लोगों की bankruptcy को देखा है। एक constructive criticism की जगह compulsive critics ने ले ली है और compulsive critics इसी में डूबे हुए हैं, खोए हुए हैं।
माननीय अध्यक्ष जी,
सदन में भ्रष्टाचार की जांच करने वाली एजेंसियों के बारे में बहुत कुछ कहा गया और मैंने देखा कि बहुत सारे विपक्ष के लोग इस विषय में सुर में सुर मिला रहे थे। मिले मेरा-तेरा सुर।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
मुझे लगता था देश की जनता देश के चुनाव के नतीजें ऐसे लोगों को जरूर एक मंच पर लाएंगे। लेकिन वो तो हुआ नहीं, लेकिन इन लोगों को ईडी का धन्यवाद करना चाहिए कि ईडी के कारण ये लोग एक मंच पर आए हैं। ईडी ने इन लोगों को एक मंच पर ला दिया है और इसलिए जो काम देश के मतदाता नहीं कर पाए।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
मैं कई बार सुन रहा हूँ, यहां कुछ लोगों को Harvard Study का बड़ा क्रेज है। कोरोना काल में ऐसा ही कहा गया था और कांग्रेस ने कहा था कि भारत की बर्बादी पर Harvard में Case Study होगी, ऐसा कहा था और कल फिर सदन में Harvard University में Study की बात कल फिर हुई, लेकिन माननीय अध्यक्ष जी बीते वर्षों में Harvard में एक बहुत बढ़िया Study हुई है, बहुत important study हुई है। और वो स्टडी है, उसका टॉपिक क्या था मैं जरूर सदन को बताना चाहूंगा और ये स्टडी हो चुकी है। स्टडी है The Rise and Decline of India’s Congress Party, ये स्टडी हो चुका है और मुझे विश्वास है अध्यक्ष जी, मुझे विश्वास है भविष्य में कांग्रेस की बर्बादी पर सिर्फ Harvard नहीं, बड़े-बड़े विश्वविद्यालयों में अध्ययन होना ही होना है और डूबाने वाले लोगों पर भी होने वाला है।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
इस प्रकार के लोगों के लिए दुष्यंत कुमार ने बहुत बढ़िया बात कही है और दुष्यंत कुमार ने जो कहा है बहुत फिट बैठता है उन्होंने कहा है:-
‘तुम्हारे पाँव के नीचे, कोई जमीन नहीं,
कमाल ये है कि फिर भी तुम्हें यकीन नहीं’।
आदरणीय अध्यक्ष जी
ये लोग बिना सिर-पैर की बात करने के आदी होने के कारण उनको ये भी याद नहीं रहता है वो खुद का कितना contradiction करते हैं। कभी एक बात-कभी दूसरी बात, कभी एक तरफ, कभी दूसरी तरफ हो सकता है वो आत्मचिंतन करके खुद के अंदर जो विरोधाभास है उसको भी तो ठीक करेंगे। अब 2014 से ये लगातार कोस रहे हैं हर मौके पर कोस रहे हैं भारत कमजोर हो रहा है, भारत की कोई सुनने को तैयार नहीं है, भारत का दुनिया में कोई वजूद ही नहीं रहा न जाने क्या- क्या कहा और अब क्या कह रहे हैं। अब कह रहे हैं कि भारत इतना मजबूत हो गया है कि दूसरे देशों को धमकाकर फैसले करवा रहा है। अरे पहले यह तो तय करो भई कि भारत कमजोर हुआ है कि मजबूत हुआ है।
माननीय अध्यक्ष जी
कोई भी जीवंत संगठन होता है, अगर जीवंत व्यवस्था होती है जो जमीन से जुड़ी हुई व्यवस्था होती है वे जनता-जनार्दन में क्या चलता है लोगों के अंदर उसका चिंतन करता है, उससे कुछ सीखने की कोशिश करता है और अपनी राह भी समय रहते हुए बदलता रहता है। लेकिन जो अहंकार में डूबे होते है, जो बस सब कुछ हम ही को ज्ञान है सब कुछ हमारा ही सही है ऐसी जो सोच में जीते हैं, उनको लगता है कि मोदी को गाली देकर ही हमारा रास्ता निकलेगा। मोदी पर झूठे अनाप-शनाप कीचड़ निकालकर ही रास्ता निकलेगा। अब 22 साल बीत गए वो गलतफहमी पालकर के बैठे हुए है।
आदरणीय अध्यक्ष जी
मोदी पे भरोसा अखबार की सुर्खियों से पैदा नहीं हुआ है। मोदी पे ये भरोसा टीवी पर चमकते चेहरों से नहीं हुआ है। जीवन खपा दिया है पल-पल खपा दिए है। देश के लोगों के लिए खपा दिए हैं, देश के उज्जवल भविष्य के लिए खपा दिए है।
आदरणीय अध्यक्ष जी
जो देशवासियों का मोदी पर भरोसा है, ये इनकी समझ के दायरे से बाहर है और समझ के दायरे से भी काफी ऊपर है। क्या ये झूठे आरोप लगाने वालों पर मुफ्त राशन प्राप्त करने वाले मेरे देश के 80 करोड़ देशवासी क्या कभी उन पर भरोसा करेंगे क्या।
आदरणीय अध्यक्ष जी
वन नेशन वन राशन कार्ड देशभर में कहीं पर भी गरीब से गरीब को भी अब राशन मिल जाता है। वो आपकी झूठी बातों पर, आपके गलत गलीच आरोपों पर कैसे भरोसा करेगा।
आदरणीय अध्यक्ष जी
जिस किसान के खाते में साल में 3 बार पीएम किसान सम्मान निधि के 11 करोड़ किसानों के खाते में पैसे जमा होते हैं, वो आपकी गालियां, आपके झूठे आरोपों पर विश्वास कैसे करेगा।
आदरणीय अध्यक्ष जी
जो कल फुटपाथ पर जिंदगी जीने के लिए मजबूर थे, जो झुग्गी-झोपड़ी में जिंदगी बसर करते थे, ऐसे 3 करोड़ से ज्यादा लोगों को पक्के घर मिले हैं उनको तुम्हारी ये गालियां, ये तुम्हारी झूठी बातें क्यों वो भरोसा करेगा अध्यक्ष जी।
आदरणीय अध्यक्ष जी
9 करोड़ लोगों को मुफ्त गैस के कनेक्शन मिला है वो आपके झूठ को कैसे स्वीकार करेगा। 11 करोड़ बहनों को इज्जत घर मिला है, शौचालय मिला है वो आपके झूठ को कैसे स्वीकार करेगा।
आदरणीय अध्यक्ष जी
आजादी के 75 साल बीत गए 8 करोड़ परिवारों को आज नल से जल मिला है, वो माताएं तुम्हारे झूठ को कैसे स्वीकार करेगी, तुम्हारी गलतियों को, गालियों को कैसे स्वीकार करेगी। आयुष्मान भारत योजना से 2 करोड़ परिवारों को मदद पहुंची है जिंदगी बच गई है उनकी मुसीबत के समय मोदी काम आया है, तुम्हारी गालियों को वो कैसे स्वीकार करेगा, कैसे स्वीकार करेगा।
आदरणीय अध्यक्ष जी
आपकी गालियां, आपके आरोपों को इन कोटि-कोटि भारतीयों से होकर के गुजरना पड़ेगा, जिनको दशकों तक मुसीबतों में जिंदगी जीने के लिए तुमने मजबूर किया था।
आदरणीय अध्यक्ष जी
कुछ लोग अपने लिए, अपने परिवार के लिए बहुत कुछ तबाह करने पर लगे हुए हैं। अपने लिए, अपने परिवार के लिए जी रहे हैं मोदी तो 25 करोड़ देशवासियों के परिवार का सदस्य है।
आदरणीय अध्यक्ष जी
140 करोड़ देशवासियों के आशीर्वाद ये मेरा सबसे बड़ा सुरक्षा कवच है। और गालियों के शस्त्र से, झूठ के शस्त्र-अस्त्रों से इस सुरक्षा कवच को तुम कभी भेद नहीं सकते हो। वो विश्वास का सुरक्षा कवच है और इन शस्त्रों से तुम कभी भेद नहीं सकते हो।
आदरणीय अध्यक्ष जी
हमारी सरकार कुछ बातों के लिए प्रतिबद्ध है। समाज के वंचित वर्ग को वरीयता उस संकल्प को लेकर के हम जी रहे हैं, उस संकल्प को लेकर के चल रहे हैं। दशकों तक दलित, पिछड़े, आदिवासी जिस हालत में उनको छोड़ दिया गया था। वो सुधार नहीं आया जो संविधान निर्माताओं ने सोचा था। जो संविधान निर्माताओं ने निर्दिष्ट किया था। 2014 के बाद गरीब कल्याण योजनाओं का सर्वाधिक लाभ मेरे इन्ही परिवारों को मिला है। दलित, पिछड़ों, आदिवासी की बस्तियों में पहली बार माननीय अध्यक्ष जी पहली बार बिजली पहुंची है। मीलों तक पानी के लिए जाना पड़ता था। पहली बार नल से जल पहुंच रहा है। इन परिवारों में पहुंच रहा है माननीय अध्यक्ष जी। अनेक परिवार, कोटि-कोटि परिवार पहली बार पक्के घर में आज जा पाए हैं। वहां रह पाए हैं।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
जो बस्तियां आपने छोड़ दी थी। आपके लिए चुनाव के समय ही जिसकी याद आती थी। आज सड़क हो, बिजली हो, पानी हो, इतना ही नहीं 4जी कनेक्टिविटी भी वहां पहुंच रही है।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
पूरा देश गौरव कर रहा है। आज एक आदिवासी राष्ट्रपति के रूप में जब देखते हैं। पूरा देश गौरवगान कर रहा है। आज देश में आधी जाति समूह के नर-नारी जिन्होंने मातृभूमि के लिए जीवन तर्पण कर दिए। आजादी के जंग का नेतृत्व किया उनका पुण्य स्मरण आज हो रहा है और हमारे आदिवासियों का गौरव दिवस मनाया जा रहा है। और हमें गर्व है कि ऐसी महान हमारी आदिवासी परंपरा के प्रतिनिधि के रूप में एक महिला देश का नेतृत्व कर रही है, राष्ट्रपति के रूप में काम कर रही है। हमने उनका हक दिया है।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
हम पहली बार देख रहे हैं। एक बात ये भी सही है। हम सबका समान अनुभव है सिर्फ मेरी ही है ऐसा नहीं है आपका भी है। हम सब जानते हैं कि जब मां सशक्त होती है, तो पूरा परिवार सशक्त होता है। परिवार सशक्त होता है तो समाज सशक्त होता है और तभी जाकर के देश सशक्त होता है। और मुझे संतोष है कि माताएं, बहनों, बेटियों की सबसे ज्यादा सेवा करने का सौभाग्य हमारी सरकार को मिला है। हर छोटी मुसीबत को दूर करने का प्रामाणिक पूर्वक प्रयास किया है। बड़ी संवेदनशीलता के साथ उस पर हमने ध्यान केंद्रित किया है।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
कभी-कभी मजाक उड़ाया जा रहा है। ऐसा कैसा प्रधानमंत्री है। लाल किले पर से टॉयलेट की बात करता है। बड़ा मजाक उड़ाया गया। आदरणीय अध्यक्ष जी, ये टॉयलेट, ये इज्जत घर, ये मेरी इन माताओं-बहनों की क्षमता, उनकी सुविधा, उनका सुरक्षा का सम्मान करने वाली बात है। इतना ही नहीं माननीय अध्यक्ष जी, जब मैं सेनेटरी पैड की बात करता हूं तो लोगों को लगता है अरे प्रधानमंत्री ऐसे विषयों में क्यों जाते हैं।
माननीय अध्यक्ष जी,
सेनेटरी पैड के अभाव में गरीब बहन-बेटियां क्या अपमान सहती थीं, बीमारियों का शिकार हो जाती थीं। माताओं-बहनों को धुएं में दिन के कई घंटे बिताने पड़ते थे। उनका जीवन धुएं में फंसा रहता था, उससे मुक्ति दिलाने का काम उन गरीब माताओं-बहनों के लिए यह सौभाग्य हमें मिला है। जिंदगी खप जाती थी। आधा समय पानी के लिए, आधा समय केरोसिन की लाइन के अंदर खपे रहते थे। आज उससे माताओं-बहनों को मुक्ति दिलाने का संतोष हमें मिला है।
माननीय अध्यक्ष जी,
जो पहले चलता था, अगर वैसा ही हम चलने देते शायद कोई हमें सवाल भी नहीं पूछता कि मोदी जी ये क्यों नहीं किया, वो क्यों नहीं किया क्योंकि देश को आपने ऐसी स्थिति में ला दिया था कि इससे बाहर निकल ही नहीं सकता था। वैसी निराशा में देश को झोंक कर रखा हुआ था। हमने उज्ज्वला योजना से धुएं से मुक्ति दिलाई, जल-जीवन से पानी दिया, बहनों के सशक्तिकरण के लिए काम किया। 9 करोड़ बहनों को सेल्फ हेल्प ग्रुप स्वयं सहायता समूह से जोड़ना। माइनिंग से लेकर के डिफेंस तक आज माताओं-बहनों को, बेटियों के लिए अवसर खोल दिए हैं। ये अवसर खोलने का काम हमारी सरकार ने किया है।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
इस बात को हम याद करें, वोट बैंक की राजनीति ने देश के सामर्थ्य को कभी-कभी बहुत बड़ा गहरा धक्का पहुंचाया है। और उसी का परिणाम है कि देश में जो होना चाहिए, जो समय पर होना चाहिए था उसमें काफी देर हो गई। आप देखिए मध्यम वर्ग, लंबे समय तक मध्यम वर्ग को पूरी तरह नकार दिया गया। उसकी तरफ देखा तक नहीं गया। एक प्रकार से वो मान के चला कि हमारा कोई नहीं, अपने ही बलबूते पर जो हो सकता है करते चलो। वो अपनी पूरी शक्ति बेचारा खपा देता था। लेकिन हमारी सरकार, एनडीए सरकार ने मध्यम वर्ग की ईमानदारी को पहचाना है। उन्हें सुरक्षा प्रदान की है और आज हमारा परिश्रमी मध्यम वर्ग देश को नई ऊंचाई पर ले जा रहा है। सरकारी की विभिन्न योजनाओं से मध्यम वर्ग को कितना लाभ हुआ है माननीय अध्यक्ष जी, मैं उदाहरण देता हूं 2014 से पहले जीबी डेटा क्योंकि आज युग बदल चुका है। ऑनलाइन दुनिया चल रही है। हरेक के हाथ में मोबाइल पड़ा हुआ है। कुछ लोगों के जेब फटे हुए हो तो भी मोबाइल तो होता ही है।
आदरणीय अध्यक्ष जी, 2014 के पहले जीबी डेटा की कीमत 250 रुपया थी। आज सिर्फ 10 रुपया है। आदरणीय अध्यक्ष जी, Average हमारे देश में एक नागरिक Average 20 जीबी का उपयोग करता है। अगर उस हिसाब को मैं लगाऊँ तो Average एक व्यक्ति का 5 हजार रुपया बचता है आदरणीय अध्यक्ष जी।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
जन औषधि स्टोर आज पूरे देश में आकर्षण का कारण बने हैं, क्योंकि मध्यम वर्ग का परिवार उसको अगर परिवार में सीनियर सिटीजन है, डायबिटीज जैसी बीमारी है, तो हजार, दो हजार, ढाई हजार, तीन हजार की दवाई हर बार महीने लेनी पड़ती है। जन औषधि केंद्र में जो दवाई बाजार में 100 रुपये में मिलती है, जन औषधि में 10 रुपये, 20 रुपये मिलती है। आज 20 हजार करोड़ रुपया मध्यम वर्ग का जन औषधि के कारण बचा है।
माननीय अध्यक्ष जी,
हर मध्यम वर्गीय परिवार का एक सपना होता है खुद का एक घर बने और urban इलाके में होम लोन के लिए की बड़ी व्यवस्था करने का काम हमने किया और रेरा का कानून बनाने के कारण जो कभी इस प्रकार का तत्व मध्यम वर्ग की मेहनत की कमाई को सालों तक डूबों कर रखते थे, उसमें से मुक्ति दिलाकर के उसको एक नया विश्वास देने का काम हमने किया और उसके कारण खुद का घर बनाने की उसकी सहूलियत बढ़ गई है।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
हर मध्यम वर्गीय परिवार को अपने बच्चों के भविष्य के लिए उसकी उच्च शिक्षा के लिए उसके मन में एक मंसूबा रहता है। वो चाहता है आज जितनी मात्रा में मेडिकल कॉलेजेस हों, इंजीनियरिंग कॉलेजेस हों, प्रोफेशनल कॉलेजों की संख्या बढ़ाई गई है। सीटें बढ़ाई गई हैं। उसने मध्यम वर्ग के एस्पीरेशन को बहुत उत्तम तरीके से एड्रेस क्या है। उसको विश्वास होने लगा है कि उनके बच्चों का उज्जवल भविष्य निर्धारित है।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
देश को आगे बढ़ाना है, तो भारत को आधुनिकता की तरफ ले जाए बिना कोई चारा नहीं है। और समय की मांग है कि अब समय नहीं गंवा सकते और इसलिए हमने इंफ्रास्ट्रक्चर की तरफ बहुत बड़ा ध्यान दिया है और ये भी मानें, स्वीकारियेगा भारत की एक जमाने में पहचान थी गुलामी के कालखंड के पहले, ये देश architecture के लिए infrastructure के लिए दुनिया में उसकी एक ताकत थी, पहचान थी। गुलामी के कालखंड में सारा नष्ट हो गया। देश आजाद होने के बाद वो दिन दोबारा आएगा, ऐसी आशा थी, लेकिन वो भी समय बीत गया। जो होना चाहिए था, जिस गति से होना चाहिए, जिस स्केल से होना चाहिए था वो हम नहीं कर पाए। आज उसमें बहुत बड़ा बदलाव इस दशक में देखा जा रहा है। सड़क हो, समुद्री मार्ग हो, व्यापार हो, waterways हो, हर क्षेत्र में आज infrastructure का कायाकल्प दिख रहा है। Highways पर, रेकॉर्ड निवेश हो रहा है माननीय अध्यक्ष जी। दुनिया भर में आज चौड़ी सड़कों की व्यवस्था होती थी, भारत में चौड़ी सड़कें, highway, expressway, आज देश की नई पीढ़ी देख रही है। भारत में वैश्विक स्तर के अच्छे highway, expressway दिखें, इस दिशा में हमारा काम है। पहले रेलवे infrastructure, अंग्रेजों ने जो देकर के गए उसी पर भी हम बैठे रहे, उसी को हमने अच्छा मान लिया। गाड़ी चलती थी।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
वो समय था, जिस प्रकार से अंग्रेज जो छोड़ करके गए थे उसी भाव में जीते रहे और रेलवे की पहचान क्या बन गई थी? रेलवे यानी धक्का-मुक्की, रेलवे यानी एक्सीडेंट, रेलवे यानी लेटलतीफी, यही यानी एक स्थिति थी लेटलतीफी में एक कहावत बनी गई थी रेलवे यानी लेटलतीफी। एक समय था हर महीने एक्सीडेंट होने वाली घटनाएं बार-बार आती थी। एक समय था एक्सीडेंट एक किस्मत बन गई थी। लेकिन अब ट्रेनों में, ट्रेनों के अंदर वंदे भारत, वंदे भारत की मांग हर एमपी चिट्ठी लिखता है, मेरे यहां वंदे भारत चालू करें। आज रेलवे स्टेशनों का कायाकल्प हो रहा है। आज एयरपोर्टों का कायाकल्प हो रहा है। सत्तर साल में सत्तर एयरपोर्ट, नौ साल में सत्तर एयरपोर्ट। देश में waterways भी बन रहा है। आज waterways पर ट्रान्स्पोर्टशन हो रहा है। आदरणीय अध्यक्ष जी, देश आधुनिकता की तरफ बढ़े इसके लिए आधुनिक infrastructure को बल देते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
मेरे जीवन में सार्वजनिक जीवन में, 4-5 दशक मुझे हो गए और मैं हिन्दुस्तान के गांवों से गुजरा हुआ इंसान हूँ। 4-5 दशक तक उसमें से एक लंबा कालखंड परिव्राजक के रूप में बिताया है। हर स्तर के परिवारों से बैठने-उठने का, बात करने का अवसर मिला है और इसलिए भारत के हर भू भाग को समाज की हर भावना से परिचित हूँ। और मैं इसके आधार पर कह सकता हूँ और बड़े विश्वास से कह सकता हूँ कि भारत का सामान्य मानवी positivity से भरा हुआ है। सकारात्मकता उसके स्वभाव का, उसके संस्कार का हिस्सा है। भारतीय समाज negativity को सहन कर लेता है, स्वीकार नहीं करता है, ये उसकी प्रकृति नहीं है। भारतीय समुदाय का स्वभाव खुशमिजाज है, स्वप्नशील समाज है, सत्कर्म के रास्ते पर चलने वाला समाज है। सृजन कार्य से जुड़ा हुआ समाज है। मैं आज कहना चाहूंगा जो लोग सपने लेकर के बैठे हैं कि कभी यहां बैठते थे फिर कभी मौका मिलेगा, ऐसे लोग जरा 50 बार सोचें, अपने तौर-तरीकों पर जरा पुनर्विचार करें। लोकतंत्र में आपको भी आत्मचिंतन करने की आवश्यकता है। आधार आज डिजिटल लेनदेन का सबसे बड़ा महत्वपूर्ण अंग बन गया है। आपने उसको भी निराधार करके रख दिया था। अब उसके भी पीछे पड़ गए थे। उसको भी रोकने के लिए कोर्ट-कचहरी तक को छोड़ा नहीं था। GST को ना जाने क्या-क्या कह दिया गया। पता नहीं लेकिन आज हिन्दुस्तान की अर्थव्यवस्था को और सामान्य मानवी का जीवन सुगम बनाने में GST ने एक बहुत बड़ी भूमिका अदा की है। उस जमाने में HAL को कितनी गालियां दी गई, किस प्रकार से और बड़े-बड़े फॉरम का misuse किया गया। आज एशिया का सबसे बड़ा हेलीकॉप्टर बनाने वाला हब बन चुका है वो। जहां से तेजस हवाई जहाज सैकड़ों की संख्या में बन रहे हैं, भारतीय सेना के हजारों, हजारों-करोड़ों रुपयों के ऑर्डर आज HAL के पास है। भारत के अंदर vibrant डिफेन्स industry आगे आ रही है। आज भारत defence export करने लगा है। माननीय अध्यक्ष जी, हिन्दुस्तान के हर नौजवान को गर्व होता है, निराशा में डूबे हुए लोगों से अपेक्षा नहीं है।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
आप जानते हैं भलीभांति समय सिद्ध कर रहा है जो कभी यहां बैठते थे वो वहां जाने के बाद भी फेल हुए हैं और देश पास होता जा रहा है, distinction पर जाके और इसलिए समय की मांग है कि आज निराशा में डूबे हुए लोग थोड़ा स्वस्थ मन रख के आत्मचिंतन करें।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
यहां जम्मू-कश्मीर की भी चर्चा हुई और जो अभी अभी जम्मू-कश्मीर घूम करके आए उन्होंने देखा होगा कितने आन-बान-शान के साथ आप जम्मू-कश्मीर में जा सकते हैं, घूम सकते हैं, फिर सकते हैं।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
पिछली शताब्दी के उत्तरार्द्ध में, मैं भी जम्मू-कश्मीर में यात्रा लेकर के गया था और लाल चौक पर तिरंगा फहराने का संकल्प लेकर के चला था और तब आतंकवादियों ने पोस्टर लगाए थे, उस समय और कहा था कि देखते हैं किसने अपनी माँ का दूध पिया है जो लाल चौक पर आ करके तिरंगा फहराता है? पोस्टर लगे थे और उस दिन 24 जनवरी थी, मैंने जम्मू के अंदर भरी सभा में कहा था, अध्यक्ष जी। मैं पिछली शताब्दी की बात कर रहा हूं। और तब मैंने कहा था आतंकवादी कान खोलकर सुन लें, 26 जनवरी को ठीक 11 बजे मैं लाल चौक पहुंचुंगा, बिना सिक्योरिटी आऊंगा, बुलेटप्रूफ जैकेट के बिना आऊंगा और फैसला लाल चौक में होगा, किसने अपनी मां का दूध पिया है। वो समय था।
माननीय अध्यक्ष जी,
और जब श्रीनगर के लालचौक में तिरंगा फहराया, उसके बाद मैंने मीडिया के लोग पूछने लगे मैंने कहा था, कि आमतौर पर तो 15 अगस्त और 26 जनवरी को जब भारत का तिरंगा लहराता है तो भारत के आयुध, भारत के बारूद सलामी देते हैं, आवाज करके देते हैं। मैंने कहा, आज जब मैं लाल चौक के अंदर तिरंगा फहराऊं, दुश्मन देश का बारूद भी सलामी कर रहा है, गोलियां चला रहा था, बंदूकें-बम फोड़ रहा था।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
आज जो शांति आई है, आज चैन से जा सकते हैं। सैकड़ों की तादाद में जा सकते हैं। ये माहौल और पर्यटन की दुनिया में कई दशकों के बाद सारे रिकॉर्ड जम्मू–कश्मीर ने तोड़े हैं। आज जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र का उत्सव मनाया जा रहा है।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
आज जम्मू-कश्मीर में हर घर तिरंगा के सफल कार्यक्रम होते हैं। मुझे खुशी है कुछ लोग हैं, जो कभी कहते थे तिरंगे से शांति बिगड़ने का खतरा लगता था कुछ लोगों को। ऐसा कहते थे कि तिरंगे से जम्मू-कश्मीर में शांति बिगड़ने का खतरा रहता था। वक्त देखिए, वक्त का मजा देखिए- अब वो भी तिरंगा यात्रा में शरीक हो रहे हैं।
और आदरणीय अध्यक्ष जी,
अखबारों में एक खबर आई थी जिसकी तरफ ध्यान नहीं गया होगा। आदरणीय अध्यक्ष जी, उसी समय अखबारों में एक खबर आई थी इसके साथ जब ये लोग टीवी में चमकने की कोशिश में लगे थे। लेकिन उसी समय श्रीनगर के अंदर दशकों बाद थियेटर हाउस फुल चल रहे थे और अलगाववादी दूर-दूर तक नजर नहीं आते थे। अब ये विदेश ने देखा है.
आदरणीय अध्यक्ष जी
अभी हमारे साथी, हमारे माननीय सदस्य नॉर्थ-ईस्ट के लिए कह रहे थे। मैं कहूंगा जरा एक बार नॉर्थ-ईस्ट हो आइए। आपके जमाने का नॉर्थ-ईस्ट और आज के जमाने का नॉर्थ-ईस्ट देखकर आइये। आधुनिक चौड़े हाइवे हैं, रेल की सुख-सुविधा वाला सफर है। आप आराम से हवाई जहाज से जा सकते हैं। नॉर्थ-ईस्ट के हर कोने में आज बड़ी और मैं गर्व के साथ कहता हूँ आजादी के 75 साल मना रहे हैं, तब मैं गर्व से कहता हूं 9 साल में करीब-करीब 7500 जो हथियार के रास्ते पर चल पड़े थे, ऐसे लोगों ने सरेंडर किया और अलगाववादी प्रवृत्ति छोड़ करके मुख्य धारा में आने का काम किया है।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
आज त्रिपुरा में लाखों परिवारों को पक्का घर मिला है, उसकी खुशी में मुझे शरीक होने का अवसर मिला था। जब मैंने त्रिपुरा में हीरा योजना की बात कही थी, तब मैंने कहा था हाईवे-आईवे-रेलवे और एयरवे हीरा, ये हीरा का आज सफलतापूर्वक त्रिपुरा की धरती पर मजबूती नजर आ रही है। त्रिपुरा तेज गति से आज भारत की विकास यात्रा का भागीदार बना है।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
मैं जानता हूं सच सुनने के लिए भी बहुत सामर्थ्य लगता है। आदरणीय अध्यक्ष जी, झूठे, गंदे आरोपों को सुनने के लिए भी बहुत बड़ा धैर्य लगता है और मैं इन सबका अभिनंदन करता हूं जिन्होंने धैर्य के साथ गंदी से गंदी बातें सुनने की ताकत दिखाई है, ये अभिनंदन के अधिकारी हैं। लेकिन सच सुनने का सामर्थ्य नहीं रखते हैं वो कितनी निराशा की गर्त में डूब चुके होंगे इसका देश आज सबूत देख रहा है।
माननीय अध्यक्ष जी,
राजनीतिक मतभेद हो सकते हैं, विचारधाराओं में मतभेद हो सकते हैं, लेकिन ये देश अजर-अमर है। आओ हम चल पड़ें- 2047, आजादी के 100 साल मनाएंगे, एक विकसित भारत बनाकर रहेंगे। एक सपना ले करके चलें, एक संकल्प ले करके चलें, पूरे सामर्थ्य के साथ चलें और जो लोग बार-बार गांधी के नाम पर रोटी सेंकना चाहते हैं- उनको मैं कहना चाहता हूं एक बार गांधी को पढ़ लें। एक बार महात्मा गांधी को पढ़ें, महात्मा गांधी ने कहा था- अगर आप अपने कर्तव्यों का पालन करोगे तो दूसरे के अधिकारों की रक्षा उसमें निहित है। आज कर्तव्य और अधिकार के बीच में भी लड़ाई देख रहे हैं, ऐसी नासमझी शायद देश ने पहली बार देखी होगी।
और इसलिए माननीय अध्यक्ष जी,
मैं फिर एक बार आदरणीय राष्ट्रपति जी को अभिनंदन करता हूं, राष्ट्रपति जी का धन्यवाद करता हूं और देश आज यहां से एक नई उमंग-नए विश्वास-नए संकल्प के साथ चल पड़ा है।
बहुत-बहुत धन्यवाद!
हम देश को विकास का ये मॉडल दे रहे हैं, जिसमें सभी हितधारकों को उनके हक मिलें.. देश हमारे साथ है
(Text of PM’s reply to the Motion of Thanks to President’s address in Rajya Sabha)
9 फरवरी
आदरणीय सभापति जी,
राष्ट्रपति जी की अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर जो चर्चा चल रही है। उस चर्चा में शरीक होकर मैं आदरणीय राष्ट्रपति जी का आदरपूर्वक धन्यवाद करता हूं। आदरणीय राष्ट्रपति जी का अभिनंदन करता हूं। आदरणीय सभापति जी, दोनों सदनों को संबोधित करते हुए उन्होंने विकसित भारत का एक खाका और विकसित भारत के संकल्प के लिए एक रोड मैप को प्रस्तुत किया है।
आदरणीय सभापति जी,
मैं उन सभी सदस्यों का भी आभार व्यक्त करता हूँ, जिन्होंने इस चर्चा में भाग लिया। अपनी कल्पना के अनुसार चर्चा को विस्तार देने का प्रयास भी किया और इसलिए मैं सदन में हिस्सा लेने और चर्चा में हिस्सा लेने वाले सभी आदरणीय सदस्यों का धन्यवाद करता हूं।
आदरणीय सभापति जी, ये सदन राज्यों का सदन है। बीते दशकों में अनेक बुद्धिजीवियों ने इस सदन से देश को दिशा दी है, देश का मार्गदर्शन किया है। इस सदन में अनेक साथी ऐसे हैं, जो अपने व्यक्तिगत जीवन में भी बहुत कुछ सिद्धियां प्राप्त की हुई हैं, अपने व्यक्तिगत जीवन में बहुत बड़े काम भी किए हुए हैं, और इसलिए इस सदन में जो भी बात होती है, उस बात को देश बहुत गंभीरता से सुनता है और देश उसे बहुत गंभीरता से लेता है।
माननीय सदस्यों को मैं यही कहूंगा कीचड़ उसके पास था, मेरे पास गुलाल, जो भी जिसके पास था, उसने दिया उछाल। और अच्छा ही है जितना कीचड़ उछालोगे कमल उतना ही ज्यादा खिलेगा। और इसलिए कमल खिलाने में आपका प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जो भी योगदान है, उसके लिए मैं उनका भी आभार व्यक्त करता हूं।
आदरणीय सभापति जी
कल विपक्ष के हमारे वरिष्ठ साथी आदरणीय खड़गे जी ने कहा कि हमने 60 साल में मजबूत बुनियाद बना रहे ऐसा कल आपने कहा और उनकी शिकायत थी कि बुनियाद तो हमने बनाई और क्रेडिट मोदी ले रहा है। लेकिन आदरणीय सभापति जी 2014 में आकर के जब मैंने बारीकी से चीजों से बड़ी गहराई से देखने का प्रयास किया, personal information लेने का प्रयास किया तो मुझे नजर आया कि 60 साल कांग्रेस के परिवार ने हो सकता है उनका इरादा मजबूत नींव बनाने का हो, मैं उस पर कोई टिप्पणी करना नहीं चाहता। लेकिन 2014 के बाद मैंने आकर के देखा कि उन्होंने गड्ढे ही गड्ढे कर दिए थे। उनका इरादा नींव का होगा, लेकिन उन्होंने गड्ढे ही गड्ढे कर दिए थे। और आदरणीय सभापति जी जब वो गड्ढे खोद रहे थे, 6-6 दशक बर्बाद कर दिए थे, उस समय दुनिया के छोटे-छोटे देश भी सफलता के शिखरों को छू रहे थे, आगे बढ़ रहे थे।
आदरणीय सभापति जी,
उनका तो उस साल इतना अच्छा माहौल था कि पंचायत से लेकर के पार्लियामेंट तक उन्हीं की दुनिया चलती थी। इतना देश भी अनेक आशा अपेक्षाओं के साथ आंख बंद करके उनका समर्थन करता था। लेकिन उन्होंने इस प्रकार की कार्य शैली विकसित की, इस प्रकार का कल्चर विकसित किया कि जिसके कारण उन्होंने एक भी चुनौती का Permanent Solution करने का न भी सोचा, न कभी उनको सूझा, न कभी उन्होंने प्रयास किया। वे बहुत हो-हल्ला हो जाता था तो चीजों को छू लेते थे, totalism कर लेते थे, तब फिर आगे चले जाते थे। समस्याओं का समाधान करना ये उनका दायित्व था। देश की जनता समस्याओं से जूझ रही थी। देश की जनता देख रही थी कि समस्या का समाधान कितना बड़ा लाभ कर सकता है। लेकिन उनकी priority अलग थी, उनके इरादे अलग थे और उसके कारण किसी भी बात के permanent solution का प्रयास नहीं किया।
आदरणीय सभापति जी,
हमारी सरकार की पहचान जो बनी है वो हमारे पुरुषार्थ के कारण बनी है, एक के बाद उठाए गए कदमों के कारण बनी है और आज हम permanent solution की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। हम एक-एक विषय को छूकर के भागने वाले लोग नहीं, लेकिन देश की मूलभूत आवश्यकताओं को permanent solution पर बल देते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं।
आदरणीय सभापति जी,
अगर मैं पानी का ही उदाहरण लूँ तो वो जमाना था कि किसी गांव में एक हैंडपंप लगा दिया तो हफ्ते भर उसका उत्सव मनाया जाता था और उस tokenism से पानी का काम करके गाड़ी चलाई जाती थी। कल यहां गुजरात का जिक्र कर रहे थे, आप हैरान होंगे सबसे ज्यादा सीटों से जितने का उनका जो गर्व था वैसे एक मुख्यमंत्री एक शहर में पानी की टंकी का उद्घाटन करने गए थे। और वो फ्रंट पेज पर हेडलाइन न्यूज़ था। यानी समस्याओं का tokenism क्या होता है कैसे टाला जाता है, ये कल्चर देश ने देखा है। हमने भी पानी की समस्या को सुलझाने के लिए रास्ते बनाए। हमने जल संरक्षण, जल सिंचन हर पहलू पर ध्यान दिया। हमने catch the rain अभियान से जनता को जोड़ा। इतना ही नहीं आजादी के पहले से अब तक हमारी सरकार में आने तक 3 करोड़ घरों तक नल से जल मिलता था।
आदरणीय सभापति जी,
पिछले 3-4 साल में आज 11 करोड़ घरों को नल से जल मिल रहा है। पानी की समस्या तो हर परिवार की समस्या होती है, जीवन उसके बिना चल नहीं सकता और भविष्य की संभावनाओं को भी देखते हुए हमने उसके समाधान के रास्ते चुनें।
आदरणीय सभापति जी,
मैं एक और विषय पर भी जाना चाहता हूं Empowerment of Common People. बैंकों का राष्ट्रीयकरण हुआ था, इस बात से हुआ था कि गरीबों को बैंकों का अधिकार मिले ऐसी बहानेबाजी की गई थी। लेकिन इस देश के आधे से अधिक लोग बैंक के दरवाजे तक नहीं पहुंच पाए। हमने permanent solutions निकाला और जन धन अकाउंट का अभियान चलाया, बैंकों को motivate किया, onboard लिया। पिछले 9 साल में ही 48 करोड़ जन धन बैंक खाते खोले गए। इसमें 32 करोड़ बैंक खाते ग्रामीण और कस्बों में हुए हैं। यानी देश के गांव तक प्रगति की मिसाल को ले जाने का प्रयास हुआ है। कल खड़गे जी शिकायत कर रहे थे कि मोदी जी बार-बार मेरे चुनावी क्षेत्र में आते हैं, वो कह रहे थे – मोदी जी कलबुर्गी आ जाते हैं, मैं जरा खड़गे जी को कहना चाहता हूं, मैं आता हूं उसकी शिकायत करने से पहले ये भी तो देखो कि कर्नाटक में 1 करोड़ 70 लाख जन धन बैंक अकाउंट खुले हैं। इतना ही नहीं उन्हीं के इलाके में कलबुर्गी में 8 लाख से ज्यादा जन धन खाते खुले हैं।
अब सभापति जी बताइए, इतने बैंक के खाते खुल जाएं, इतना empowerment हो जाए, लोग इतने जागरूक हो जाए और किसी का इतने सालों के बाद खाता बंद हो जाए तो उनकी पीड़ा, मैं समझ सकता हूं। अब बार-बार उनका दर्द झलकता है और मैं तो हैरान हूं, कभी-कभी यहां तक कह देते हैं कि एक दलित को हरा दिया, अरे भई उसी इलाके की जनता जनार्दन है, एक दूसरे दलित को जीता दिया। अब आपको जनता नकार दे रही है, आपको हटा रही है, आपका खाता बंद कर रही है और आप रोना यहां रो रहे हो।
आदरणीय सभापति जी,
जन धन, आधार, मोबाइल ये जो त्रिशक्ति है और उसने सीधा Direct Benefit Transfer उस योजना के तहत पिछले कुछ वर्षों में 27 लाख करोड़ रुपये इस देश नागरिकों के बैंक खातों में ट्रांसफर किया है, हितधारकों के खातों में ट्रांसफर किया है और मुझे खुशी है कि Direct Benefit Transfer इस Technology का उपयोग करने के कारण इस देश के 2 लाख करोड़ रूपये से ज्यादा पैसे जो किसी Eco-system के गलत हाथों में जाता था वो बच गया है, देश की बहुत बड़ी सेवा की है। और मैं जानता हूं जिस Eco-system के शागिर्दों, चेले-चपाटों को जो जिन्हें 2 लाख करोड़ की ऐसे ही फायदे मिलते रहते थे, उनका चिल्लाना भी बहुत स्वाभाविक है।
आदरणीय सभापति जी,
हमारे देश में पहले परियोजनाएं अटकाना, लटकाना, भटकाना ये उनकी कार्य संस्कृति का हिस्सा बन गया था, यहीं उनका कार्य करने का तरीका बन गया था। ईमानदार Tax-payer की गाढ़ी कमाई उसका नुकसान होता था। हमने Technology का Platform तैयार किया पीएम गतिशक्ति मास्टर प्लान लेकर के आए और 1600 लेयर में डेटा के माध्यम से Infrastructure के इन प्रोजेक्ट्स को गति देने का काम हो रहा है। जो योजनाएं बनाने में महीनों लग जाते थे वो आज सप्ताहों के भीतर-भीतर उसको आगे बढ़ा दिया जाता है। क्योंकि आधुनिक भारत के निर्माण के लिए Infrastructure का महत्व हम भली भांति समझते हैं। स्केल का भी महत्व समझते हैं। स्पीड का भी महत्व समझते हैं और टेक्नोलॉजी के माध्यम से permanent solution और permanent aspiration को address करने का प्रयास आदरणीय सभापति जी हम कर रहे हैं।
आदरणीय सभापति जी,
कोई भी जब सरकार में आता है तो देश के लिए कुछ करने के वादे करके आता है। जनता का कुछ भला करने के वादे करके आता है। लेकिन सिर्फ भावनाएँ व्यक्त करने से बात बनती नहीं है। आप कह दें कि हम ऐसा चाहते हैं, हम ऐसा चाहते हैं जैसे कभी कहा जाता था गरीबी हटाओ 4-4 दशक हो गए, हुआ कुछ नहीं। इसलिए विकास की गति क्या है, विकास की नीयत क्या है, विकास की दिशा क्या है, विकास का प्रयास क्या है, परिणाम क्या है, ये बहुत मायने रखता है। सिर्फ आप कहते रहे कि हम भी कुछ करते थे, इतने से बात बनती नहीं है।
आदरणीय सभापति जी,
जबकि हम जनता को उनकी प्राथमिकताओं के आधार पर उनकी आवश्यकताओं और जब जनता की इतनी बड़ी आवश्यकताओं के लिए मेहनत करते हैं, तो हम पर दबाव भी बढ़ता है। हमें मेहनत भी ज्यादा करनी पड़ती है, हमें परिश्रम भी ज्यादा करना पड़ता है। लेकिन हमने जैसे महात्मा गांधी जी कहते थे, श्रेय और प्रिय। हमने श्रेय का रास्ता चुना है, प्रिय लग जाए आराम कर लें, वो रास्ता हमने नहीं चुना है। मेहनत करनी पड़ेगी तो हम लोग करेंगे। दिन रात खपाना पड़ेगा तो खपाएंगे, लेकिन जनता जर्नादन की aspiration को चोट नहीं पहुंचने देंगे और उसकी aspiration सिद्धियों में परिवर्तित हो जाए और देश विकास की यात्रा को पार करे, इसके लिए हम काम करते रहेंगे। इन सब सपनों को लेकर के चलने वाले हम लोग हैं और हमने वो करके दिखाया है।
आदरणीय सभापति जी,
अब आप देखिये, देश आजाद हुआ तब से 2014 तक 14 करोड़ एलपीजी कनेक्शन थे और लोगों की मांग भी थी। लोग सांसदों के पास जाते थे कि हमें एलपीजी कनेक्शन मिल जाए और उस समय 14 करोड़ घरों में था, डिमांड भी कम थी, प्रेशर भी कम था, आपको गैस लाने के लिए खर्चा भी नहीं करना पड़ता था, आपको गैस पहुंचाने के लिए व्यवस्था, आपके मजे में गाड़ी चलती थी, काम होता नहीं था। लोग इंतजार करते रहते थे। लेकिन हमने सामने से होकर के तय किया कि हर घर को एलपीजी कनेक्शन देंगे। हमें मालूम था कि हम कर रहे हैं, हमें मेहनत करनी पड़ेगी। हमें मालूम था हमें धन खर्च करना पड़ेगा। हमें मालूम था हमें दुनिया भर से गैस लाना पड़ेगा। एक साथ दबाव की संभावना जानने की बावजूद भी हमारी प्राथमिकता मेरे देश का नागरिक था। हमारी प्राथमिकता हमारे देश के सामान्य लोग थे और इसलिए हमने 32 करोड़ से ज्यादा परिवारों के पास गैस कनेक्शन पहुंचाये। नया infrastructure खड़ा करना पड़ा, धन खर्च करना पड़ा।
आदरणीय सभापति जी,
इस एक उदाहरण से आप समझ सकते हैं कि हमें कितनी मेहनत करनी पड़ी होगी। लेकिन हमने आनंद के साथ, संतोष के साथ, गर्व के साथ इस मेहनत को किया और मुझे खुशी है कि सामान्य मानवी को उसका संतोष मिला। इससे बड़ा एक सरकार के लिए संतोष क्या होगा।
आदरणीय सभापति जी,
आजादी के अनेक दशकों के बाद भी इस देश में 18 हजार से ज्यादा गांव ऐसे थे, जहां बिजली नहीं पहुंची थी और ये गांव अधिकतर हमारे आदिवासी बस्ती के गांव थे। हमारे पहाड़ों पर जिंदगी गुजराने वाले लोगों के गांव थे। जनजाति के गांव थे। नॉर्थ ईस्ट के गांव थे, लेकिन ये उनके चुनाव के हिसाब-किताब में बैठता नहीं था। इसलिए इनकी priority नहीं था। हम जानते थे, ये कठिन काम उन्होंने छोड़ दिये हैं। हमने कहा हम तो मक्खन पर लकीर करने वाले नहीं, पत्थर पर लकीर करने वाले लोग हैं। हम इस चुनौती को भी उठाएंगे। हम इस चुनौती को भी उठाएंगे और हमने हर गांव में बिजली पहुंचाने का संकल्प उठाया। समय सीमा में 18 हजार गांवों में बिजली पहुंचाई और उस चुनौतीपूर्ण काम करने के पीछे गांवों में एक नई जिंदगी की अनुभूति हुई। उनका विकास तो हुआ लेकिन सबसे बड़ी बात हुई देश की व्यवस्था पर उनका विश्वास बढ़ा और विश्वास बहुत बड़ी ताकत होती है। जब देश के नागरिकों का विश्वास बनता है तब वो लाखों करोड़ों गुना एक सामर्थ्य में परिवर्तित हो जाता है। वो विश्वास हमने जीता है और हमने मेहनत की, हमें करनी पड़ी, लेकिन मुझे खुशी है कि उन दूरदराज के गांवों को आजादी के इतने सालों के बाद नई आशा की किरण दिखाई दी, संतोष का भाव प्रकट हुआ और वो आशीर्वाद आज हमें मिल रहे हैं।
आदरणीय सभापति जी,
पहले की सरकारों में कुछ घंटे बिजली आती थी। कहने को तो लगता था बिजली आ गई। गांव के बीच में एक खंभा डाल दिया तो हर साल उसकी anniversary मनाते थे। फलानी तारीख को खंभा डाला गया था। बिजली तो आती नहीं थी। आज बिजली पहुंची इतनी ही नहीं, औसत हमारे देश में 22, 22 घंटे बिजली देने के प्रयास में हम सफल हुए हैं। हमें इस काम के लिए नई transmission लाइनें लगानी पड़ी। हमें नए ऊर्जा उत्पादन के लिए काम करना पड़ा। हमें सौर ऊर्जा की ओर जाना पड़ा। हमें renewable energy के अनेक क्षेत्र खोजने पड़े। हमने लोगों को उनके भाग्य पर नहीं छोड़ दिया। राजनीतिक फायदे घाटे की बात नहीं सोची। हमने देश के आने वाले कल को उज्ज्वल बनाने का रास्ता चुना। हमने खुद के लिए दबाव बढ़ाया। लोगों की मांग बढ़ने लगी, दबाव बढ़ने लगा। हमने मेहनत वाला रास्ता चुना और इसके नतीजे आज देश देख रहा है। देश ऊर्जा के क्षेत्र में प्रगति की ऊंचाइयों को प्राप्त कर रहा है।
आदरणीय सभापति जी,
हमने आजादी के अमृत काल में एक बहुत बड़ा हिम्मत भरा कदम उठाया। मैं जानता हूँ ये आसान नहीं है, हमें बहुत मेहनत करनी पड़ी है। और वो रास्ता हमने चुना है सेचुरेशन का। हर योजना के जो लाभार्थी हैं, शत प्रतिशत लाभ कैसे पहुंचे, शत प्रतिशत लाभार्थियों को लाभ पहुंचे, बिना रोक टोक के लाभ पहुंचे और मैं कहता हूं, अगर सच्ची पंथ निरपेक्षता है तो यही है, सच्चा secularism है तो यही है और सरकार उस राह पर बड़ी ईमानदारी के साथ चल पड़ी है। अमृत काल में हमने Saturation का संकल्प लिया है। शत-प्रतिशत लाभार्थियों तक पहुंचने का भाजपा एनडीए सरकार का ये संकल्प है।
आदरणीय सभापति जी,
ये शत-प्रतिशत वाली बात, ये Saturation वाली बात देश की अनेक समस्याओं का समाधान तो है ही। उस नागरिक की समस्याओं का समाधान इतना ही नहीं है, देश की समस्याओं का समाधान है। एक ऐसी नई कार्य संस्कृति को ले करके हम आ रहे हैं जो देश में मेरा-तेरा, अपना-पराया, इन सारे भेदों को मिटाने वाला रास्ता है, Saturation वाला हम ले करके आए हैं।
Saturation तक पहुंचने का मतलब होता है भेदभाव की सारी गुंजाइशें खत्म करना। जब distinction रहता है तब करप्शन को भी संभावना मिलती है। कोई कहेगा मुझे जल्दी दो, वो कहता है इतना दोगे तो दूंगा, लेकिन शत-प्रतिशत जाना है तो उसको विश्वास होता है भले इस महीने मुझे नहीं पहुंचा, तीन महीने के बाद पहुंचेगा, लेकिन पहुंचेगा, विश्वास बढ़ता है। ये तुष्टिकरण की आशंकाओं को समाप्त कर देता है। फलानी जाति को मिलेगा, फलाने परिवार को मिलेगा, फलाने गांव को मिलेगा, फलानी बिरादरी को मिलेगा, फलाने पंथ-सम्प्रदाय वालों को मिलेगा; ये सारी तुष्टिकरण की आशंकाओं को खत्म कर देता है। स्वार्थ के आधार पर लाभ पहुंचाने की प्रवृत्ति को पूरी तरह खत्म कर देता है और समाज के आखिरी व्यक्ति को, जो आखिरी पंक्ति में खड़ा हुआ व्यक्ति है और महात्मा गांधी जिसकी हमेशा वकालत करते थे, उसके अधिकारों की रक्षा इसके अंदर समाहित होती है और हम उसको सुनिश्चित करते हैं। और सबका साथ-सबका विकास, ये मतलब यही है कि शत-प्रतिशत उनके हकों को पहुंचाना।
जब सरकार की मशीनरी का लक्ष्य हर पात्र व्यक्ति तक पहुंचने का हो तो भेदभाव, पक्षपात टिक ही नहीं सकता। इसलिए हमारा ये 100 पर्सेंट सेवा अभियान सोशल जस्टिस, सामाजिक न्याय, इसका बहुत बड़ा सशक्त माध्यम है। यही सामाजिक न्याय की असली गारंटी है। यही सच्ची पंथ निरपेक्षता है। यही सच्चा secularism है।
हम देश को विकास का ये मॉडल दे रहे हैं, जिसमे हितधारक सबको उनके हक मिलें। देश हमारे साथ है, कांग्रेस को बार-बार देश नकार रहा है, लेकिन कांग्रेस और उसके साथी अपनी साजिशों से बाज नहीं आते हैं और जनता ये देख भी रही है और उनको हर मौके पर सजा भी देती रही है।
आदरणीय सभापति जी,
हमारे देश की आजादी में 1857 से ले करके स्वातंत्र्य संग्राम का कोई भी दशक उठा लीजिए, हिन्दुस्तान का कोई भी भू-भाग उठा लीजिए, मेरे देश की आजादी की लड़ाई में मेरे देश के आदिवासियों का योगदान स्वर्णिम पृष्ठ से भरा पड़ा हुआ है। गर्व होता है देश को कि मेरे आदिवासी भाइयों ने आजादी के महात्मय को समझा था। लेकिन दशकों तक मेरे आदिवासी भाई विकास से वंचित रहे और विश्वास का सेतु तो कभी बन ही नहीं पाया, आशंकाओं से भरी हुई व्यवस्था बनी। और उन नौजवानों के मन में बार-बार सरकारों के लिए सवाल उठते चले गए। लेकिन उन्होंने सही नीयत से काम किया होता, नेक नीयत से काम किया होता, आदिवासियों के कल्याण के प्रति समर्पण भाव से काम किया होता तो आज 21वीं सदी के तीसरे दशक में मुझे इतनी मेहनत नहीं करनी पड़ती, लेकिन उन्होंने नहीं किया। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी। पहली बार इस देश में आदिवासियों के विकास के लिए अलग मंत्रालय बना, पहली बार आदिवासियों के कल्याण के लिए, भलाई के लिए, विकास के लिए अलग बजट की व्यवस्था हुई।
आदरणीय सभापति जी,
हमने 110 जिलों को आकांक्षी जिलों के रूप में identify किया है, जो विकास में पीछे रह गए। सामाजिक न्याय जैसे महत्व और भौगोलिक रूप से भी जो पीछे रह गए हैं उनको न्याय दिलाना उतना ही आवश्यक होता है। और इसलिए हमने 110 आकांक्षी जिले और 110 में आधे से अधिक वो इलाके हैं, जहां बहुल जनसंख्या जनजातीय है, मेरे आदिवासी भाई-बहन रहते हैं। तीन करोड़ से ज्यादा आदिवासी भाइयों को इसका सीधा लाभ मिला है। उनके जीवन में बदलाव आया है। इन क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य, इंफ्रास्ट्रक्चर, इसमें अभूतपूर्व सुधार हुआ है क्योंकि हमने 110 जिलों पर विशेष फोकस किया है, उसकी रेगुलर मॉनिटरिंग कर रहे हैं।
यहां पर हमारे कुछ माननीय सदस्यों ने tribal sub-plan की बात का ज़िक्र किया था। मैं ऐसे साथियों से अनुरोध करता हूं कि जरा समय निकाल करके किसी पढ़े-लिखे व्यक्ति की मदद ले करके बैठिए जो बजट को अध्ययन कर सकता है, थोड़ा समझा सकता है। और आप देखेंगे तो पता चलेगा कि बजट में scheduled tribe component funds इसके तहत 2014 के पहले की तुलना में पांच गुना अधिक वृद्धि हुई है।
आदरणीय सभापति जी,
2014 के पहले जब उनकी सरकार थी, तब एलोकेशन 20-25 हजार करोड़ रुपये के आसपास रहता था, बहुत पुरानी बात नहीं है, सिर्फ 20-25 हजार करोड़ रुपये। आज यहां आ करके गीत गा रहे हैं। हमने आ करके इस वर्ष 1 लाख 20 हजार करोड़ का प्रावधान किया है। हमने बीते 9 वर्षों में हमारे आदिवासी, हमारे जनजातीय भाई-बहनों के उज्ज्वल भविष्य के लिए, उन बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए 500 नए एकलव्य मॉडल स्कूल स्वीकृत किए हैं और ये चार गुना ज्यादा बढ़ोतरी है। इतना ही नहीं स्कूलों में टीचर, स्टाफ इस बार हमने 38 हजार नए लोगों के recruitment का, हमने भर्ती का इस बजट में प्रावधान किया है। आदिवासियों के कल्याण के लिए समर्पित हमारी सरकार ने, मैं जरा आपको forest right act की बात की तरफ ले जाना चाहता हूं।
आदरणीय सभापति जी,
देश आजाद होने से लेकर हमारे आने से पहले, 2014 के पहले आदिवासी परिवारों को 14 लाख जमीन के पट्टे दिए गए थे। पिछले 7-8 वर्षों में हमने 60 लाख नए पट्टे दिए हैं। ये अभूतपूर्व काम हुआ है। हमारे आने से पहले 23 हजार सामुदायिक पट्टे दिए गए, हमारे आने के बाद 80 हजार से अधिक सामुदायिक पट्टे दिए गए हैं। Deep sympathy बता करके आदिवासियों की भावनाओं के साथ खेलने के बजाय अगर कुछ किया होता तो आज मुझे इतनी मेहनत न करनी पड़ती और ये काम पहले आराम से हो जाता। लेकिन ये उनकी priority में नहीं था।
आदरणीय सभापति जी,
इनकी अर्थनीति, उनकी समाज नीति, उनकी राजनीति वोट बैंक के आधार पर ही चलती रही। और उसके कारण समाज की जो बेसिक ताकत होती है, स्वरोजगार के कारण देश की आर्थिक गतिविधि बढ़ाने वाला जो सामर्थ्य होता है, इन्होंने हमेशा use नजरअंदाज कर दिया। उनको वो इतने छोटे लगते थे, इतने बिखरे हुए लगते थे कि उसका उनको कोई मूल्य ही नहीं था जो छोटे-छोटे काम में जुड़े हुए थे। वो स्वरोजगार के ऊपर समाज पर बोझ बने बिना समाज में कुछ न कुछ value edition करते हैं, छोटे काम में जुटे हुए इन करोड़ों लोगों को भूला दिया गया। मुझे गर्व है कि मेरी सरकार ने रेहड़ी वाले, ठेले वाले, फुटपाथ पर व्यापार करने वाले लोग की सहूलियत के लिए, ब्याज के चक्कर में जिनके जीवन तबाह हो जाते थे। दिन भर का पसीना ब्याजखोरों के घर जाकर के चुकाना पड़ता था उन गरीबों की चिंता हमने की, उन रेहड़ी, ठेले, पटरी वालों की चिंता हमने की। और आदरणीय सभापति जी, हमने इतना ही नहीं, हमारे विश्वकर्मा समुदाय जो समाज निर्माण के अंदर एक भूमिका देते हैं, जो अपने हाथ से औजार की मदद से कुछ न कुछ सृजन करते रहते हैं, समाज की आवश्यकताओं की बहुत बड़ी मात्रा में पूर्ति करते हैं। चाहे हमारा बंजारा समुदाय हो, चाहे हमारे घुमंतू जाति के लोग हैं हमने उनकी चिंता करने का काम किया है। पीएम स्वनिधि योजना हो, पीएम विश्वकर्मा योजना हो, जिसके द्वारा हमने समाज के इन लोगों की मजबूती के लिए काम किया है, उनके सामर्थ्य को बढ़ाने के लिए काम किया है।
आदरणीय सभापति जी,
आप तो स्वयं किसान पुत्र हैं, इस देश के किसानों के साथ क्या बीती है। ऊपर के कुछ एक वर्ग को संभाल लेना और उन्हीं से अपनी राजनीति चलाए रखना, यही सिलसिला चला। इस देश की कृषि की सच्ची ताकत छोटे किसानों में है। एक एकड़, दो एकड़ भूमि की उपज करने वाला मुश्किल से 80-85 प्रतिशत इस देश का ये वर्ग है। ये छोटे किसान उपेक्षित थे, उनकी आवाज़ काेई सुनने वाला नहीं था। हमारी सरकार ने छोटे किसानों पर ध्यान केंद्रित किया। छोटे किसानों को फाॅर्मल बैंकिंग के साथ जोड़ा। आज साल में 3 बार सीधे पीएम किसान सम्मान निधि छोटे किसान के खाते में जमा होती है। इतना ही नहीं हमने पशुपालकों को भी बैंकों से जोड़ा, हमने मछुआरों को बैंकों से जोड़ा और उनको ब्याज में रियायत देकर के उनके आर्थिक सामर्थ्य को बढ़ाया, ताकि वो अपना व्यवसाय विकसित कर सके, अपने क्रॉप-पैटर्न को बदल सकें, अपने उत्पादित किए हुए माल को रोककर के उचित दाम मिलने पर बाजार में ले जा सके उस दिशा में हमने काम किया।
आदरणीय सभापति जी,
हम जानते हैं, हमारे देश के बहुत सारे किसान ऐसे हैं कि जिनको बरसाती पानी पर गुजारा करना पड़ता है। सिंचाई की व्यवस्थाएँ पिछली सरकारों ने की नहीं। हमने और देखा है कि ये छोटे किसान बरसाती पानी के भरोसे जीने वाले मोटी अनाज की खेती करते हैं, पानी होता नहीं है। ये मोटे अनाज की खेती करने वाले किसानों को हमने विशेष स्थान दिया। हमने यूएन को लिखा कि millet year मनाइये। दुनिया में भारत के मोटे अनाज की एक ब्रांडिंग बने, मार्केटिंग बने और उसे सुविचारिक रूप से अब उस मोटे अनाज को श्री अन्न के रूप में जैसे श्रीफल का महात्मय है, वैसे ही श्री अन्न का महात्मय बने और छोटे किसान जो पैदावार करते हैं, उनको उचित दाम मिले, ग्लोबल मार्किट मिले, देश में क्रॉप-पैटर्न में परिवर्तन आए और इतना ही नहीं ये millet superfood है, पोषण के लिए बहुत बड़ी ताकत है। हमारे देश के नई पीढ़ी को पोषण की समस्या के समाधान में भी ये काम आए, जो मेरे छोटे किसान को भी मजबूत करेगा। हमने फर्टिलाइजर में भी अनेक नए विकल्प डेवलप किए हैं उसका भी लाभ मिला है।
आदरणीय सभापति जी,
बड़े conviction के साथ मैं मानता हूं कि जब निर्णय प्रक्रिया में माताओं–बहनों की भागीदारी बढ़ती है तो परिणाम अच्छे मिलते हैं, जल्दी मिलते हैं और निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने वाले होते हैं। और इसलिए माता-बहनों की भागीदारी बढ़े, वे निर्णय प्रक्रियाओं में हमारे साथ जुड़ें उस दिशा में महिला सशक्तिकरण को लेकर के महिलाओं के नेतृत्व के विकास के लिए हमारी सरकार ने प्राथमिकता दी है। सदन में हमारे एक मान्य सदस्य ने कहा कि महिलाओं को टॉयलेट देने से क्या महिलाओं का विकास हो जाएगा। हो सकता है उनका ध्यान सिर्फ टॉयलेट पर गया हो वो उनकी कठिनाई होगी, लेकिन मैं जरा बताना चाहता हूं। मुझे इस बात का गर्व है और मैं गर्व अनुभव करता हूं। क्योंकि मैं राज्य में रहकर के आया हूं। मैं गांव में जिंदगी गुजार के आया हूं। मुझे गर्व है कि 11 करोड़ शौचालय बनाकर के मैंने मेरी माताओं-बहनों को इज्जत घर दिया है। मुझे इस बात का गर्व है। हमारी माताओं बहनों हमारी बेटियों के जीवन चक्र की तरफ जरा नजर करें, हमारी सरकार माताओं बहनों के सशक्तिकरण के लिए कितनी संवेदनशील है, उसकी तरफ मैं जरा ध्यान आकर्षित करना चाहता हूं। और जिनकी सोच सिर्फ टॉयलेट ही सोच गई थी, वो जरा कान खोलकर के सुने ताकि आगे चल के उनको ये बताने में सुविधा होगी। गर्भावस्था के दौरान शिशु को पौष्टिक खाना मिले, इसके लिए हमने मातृवंदना योजना चलाई और इसके लिए प्रेग्नेंसी के समय महिला के बैंक खाते में सीधा पैसा जाए, ताकि उसको पोषण से उसके गर्भ में जो बच्चा है, उसके स्वास्थ्य को भी लाभ हो। हमारे यहां माता मृत्यु दर, शिशु मृत्यु दर इस गंभीर समस्या से मुक्ति का एक उपाय institutional delivery हमारे गरीब से गरीब मां की institutional delivery हो, शिशु का जन्म अस्पताल में हो, इसके लिए हमने धन भी खर्च करना तय किया और व्यापक अभियान भी चलाया और उसके परिणाम दिखाई भी दे रहे हैं। हम जानते हैं किसी न किसी मानसिक विकृति के कारण बेटियों को मां के कोख में ही मारने की प्रवृत्ति बढ़ गई थी। ये समाज के लिए कलंक था। हमने बेटी बचाओ अभियान चलाया और आज मुझे खुशी है कि बेटे जन्म लेते हैं उसकी तुलना में बेटियों की संख्या बढ़ रही है। ये हमारे लिए संतोष का विषय है। हमने बेटियों की रक्षा का काम किया है। बेटी जब बड़ी होकर स्कूल जाए और शौचालय के अभाव में पाँचवीं, छठी कक्षा में आते-आते स्कूल छोड़ दे, हमने उस चिंता को भी अड्रेस किया और स्कूलों में बच्चियों के लिए अलग टॉयलेट बनाए, ताकि मेरी बच्चियों को स्कूल छोड़ना न पड़ें, ये हमने चिंता की। बेटी की शिक्षा जारी रहे और इसलिए हमने सुकन्या समृद्धि योजना, जिसमें अधिक ब्याज देकर के बेटियों को सुरक्षित शिक्षा की व्यवस्था का प्रबंध किया, ताकि परिवार भी उनको प्रोत्साहन दे। बेटी बड़ी होकर अपना काम करने के लिए बिना गारंटी मुद्रा योजना से लोन ले सके, अपने पैरों पर खड़ी हो सके और मुझे खुशी है कि मुद्रा योजना के लाभार्थियों में 70 प्रतिशत हमारी माताएं-बेटियां हैं। हमने ये काम किया है।
मां बनने के बाद भी नौकरी जारी रख सके इसके लिए मातृत्व अवकाश में हमने वृद्धि की है वो Developed Country से भी कभी-कभी ज्यादा है ये काम हमने किया है। बेटियों के लिए सैनिक स्कूल खोल दिए हैं।
आदरणीय सभापति जी,
आप तो स्वयं सैनिक स्कूल के विद्यार्थी रहे हैं I बेटियों को वहां एंट्री नहीं थी वो काम भी हमने कर दिया आज सैनिक स्कूलों में मेरी बेटियां पढ़ रही हैं। इतना ही नहीं हमारी बेटियां अबला नहीं सबला हैं वो सेना में जाना चाहती हैं, अफसर बनना चाहती हैं। हमे-हमारी बेटियों को सेना के दरवाजें भी खोल दिए हैं। और आज गर्व होता है सियाचिन में मेरे देश की कोई बेटी मां भारती की रक्षा करने के लिए तैनात होती है।
बेटी को गांव में कमाई के अवसर मिले और इसके लिए हमने Women’s Self Help Group उसको एक नई ताकत दी Value Edition किया और बैंकों से मिलने वाली उनकी रकम में बहुत बड़ा इजाफा किया और इसलिए वो भी हमने उनकी प्रगति के लिए हमारी माताओं-बेटियों, बहनों को लकड़ी के धुए से जिंदगी में मुसीबतें झेलनी न पड़े इसलिए हमने उज्जवला योजना से गैस का कनेक्शन दिया। हमारी माताओं-बहनों को, बेटियों को पीने के पानी के लिए जूझना न पड़े 2-2, 4-4 किलोमीटर तक जाना न पड़े हमने नल से घर तक पानी पहुंचाने का अभियान चलाया ताकि मेरी माताओं-बेटियों को, बहनों को, बेटियों को अंधेरे में गुजारा न करना पड़े इसलिए हमने सौभाग्य योजना से ऐसे गरीब परिवारों तक बिजली पहुंचाई। बेटी, मां, बहन कितनी ही गंभीर बिमारी हो लेकिन कभी बताती नहीं है, उसको चिंता रहती है कि कही बच्चों पर कर्ज हो जाएगा, परिवार पर बोझ हो जाएगा वो पीड़ा सहती है लेकिन अपने बच्चों को अपनी बीमारी के विषय में नहीं बताती है। उन माताओं-बहनों को आयुष्मान कार्ड देकर के अस्पताल में बड़ी से बड़ी बीमारी से मुक्ति का रास्ता हमने खोल दिया है।
आदरणीय सभापति जी,
बेटी का संपत्ति पर अधिकार हो इसलिए हमने सरकार की तरफ से जो आवास देते है उसमें बेटी के राइट को निश्चित किया, उसके नाम पर प्रॉपर्टी करने का काम किया। हमने महिला सशक्तिकरण के लिए हमारी माताओं-बहनों को जो भी छोटी-मोटी बचत कर लें, मुसीबत झेलकर के बचत करना माताओं-बहनों का स्वभाव होता है और वो घर में अनाज के डिब्बे में पैसे रखकर के गुजारा करती है। उस मुसीबत से निकाल के हमने उसको जनधन के खाते दे दिए। बैंक में पैसा जमा करें, इसकी घोषणा कर दी।
और आदरणीय सभापति जी,
इस बजट सत्र के लिए तो गर्व की बात है कि बजट सत्र का प्रारंभ महिला राष्ट्रपति के द्वारा होता है और बजट सत्र का विधिवत प्रारंभ महिला वित्त मंत्री के भाषण में होता है। देश में ऐसा संयोग पहले कभी नहीं आया जो आज आया है। और हमारा तो प्रयास रहेगा के ऐसे शुभ अवसर आगे भी देखने को मिले।
आदरणीय सभापति जी,
जब देश को आधुनिक होना है नए संकल्पों को पार करना है तो हम साइंस और टेक्नोलॉजी के सामर्थ्य का नकार नहीं सकते। साइंस और टेक्नोलॉजी के महकमे को हमारी सरकार भली-भांति समझती है। लेकिन हम टुकड़ों में नहीं सोचते, हम tokenism में नहीं सोचते हैं। हम साइंस और टेक्नोलॉजी की तरफ से देश को आगे बढ़ाने के लिए हर दिशा में काम कर रहे हैं, सावृत्रिक प्रयास कर रहे हैं, हर एक initiative ले रहे हैं। और इसलिए बचपन में Scientific Temperament develop करने के लिए अटल टिंकरिंग लैब एक वैज्ञानिक सोच के निर्माण के लिए स्कूल के लेवल पर बच्चों को हमने अवसर दिया उससे थोड़ा आगे निकले बच्चा कुछ करना शुरू करे तो हमने अटल इन्क्यूबेशन सेंटर खड़े किए ताकि कुछ अगर अच्छी प्रगति की है तो उसको वो वायुमंडल मिले ताकि वो टेक्नोलॉजी में कनवर्ट करने के लिए वो सोच वो इनोवेशन काम आ जाए इसके लिए हमने विज्ञान की प्रगति का परिणाम हमने नीतियां बदली, स्पेश के क्षेत्र में प्राइवेट भागीदारी का हमने सपना पूरा किया और मुझे खुशी है मेरे देश के नौजवान आज प्राइवेट सेटेलाइट छोड़ने की ताकत रखते हैं ये साइंस और टेक्नोलॉजी है। आज स्टार्टअप की दुनिया जो मूलत: साइंस और टेक्नोलॉजी से जुड़ी हुई है उसमें यूनिकार्न की संख्या आज हम दुनिया में तीसरे नंबर पर पहुंच गए हैं।
आदरणीय सभापति जी,
आज ये देश गर्व करेगा कि सर्वाधिक पेटेंट, इनोवेशन और दुनिया के बाजार में टिकता है पेटेंट ये सबसे अधिक पेटेंट रजिस्टर करने में आज मेरे देश के नौजवान आगे आ रहे हैं।
आदरणीय सभापति जी,
आधार की ताकत क्या होती है वो हमारी सरकार ने आकर दिखा दिया और आधार से जुड़े हुए जो विद्वान लोग है उन्होंने भी कहा है कि आधार के महत्व को, टेक्नोलॉजी के महत्व को 2014 के बाद समझा गया और उसके कारण वो मेहनत अब रंग ला रही है। हमने देखा है कोविड के काल में कोविन प्लेटफार्म 200 करोड़ वैक्सीनेशन और सर्टिफिकेट कोविन का आपके मोबाइल पर within a second आ जाता है। लेकिन दुनिया को अचम्भा तब हुआ कि भारत अपनी वैक्सीन लेकर आ गया है कोविड में, दुनिया के लोग अपनी वैक्सीन हमारे यहां से बहुत बड़ा मार्केट था बेचने के लिए भांति-भांति प्रेसर करते थे, आर्टिकल लिखे जाते थे, टीवी में इंटरव्यू दिए जाते थे, सेमिनार किए जाते थे। इतना ही नहीं मेरे देश के वैज्ञानिकों को बदनाम करने के लिए उनको नीचा दिखाने के लिए कंकर प्रयास करें। और मेरे ही देश वैज्ञानिकों ने आज दुनिया में जिसको स्वीकृति मिली है ऐसी वैक्सीन से मेरे देशवासियों का ही नहीं देशों-देशों के लोगों की आवश्यकता का पूरा किया। ये विज्ञान के विरोधी लोग ये टेक्नोलॉजी के…
आदरणीय सभापति जी,
ये विज्ञान के विरोधी हैं, ये टेक्नोलॉजी के विरोधी हैं हमारे वैज्ञानिकों को बदनाम करने का कोई मौका नहीं छोड़ते। Pharmacy की दुनिया में हमारा देश एक ताकत बनकर उभर रहा है, दुनिया की Pharmacy का हब बन रहा है। हमारे नौजवान नए-नए इनोवेशन कर रहे हैं। उसको बदनाम करने के रास्ते खोज रहे हैं ये लोग उनको देश की चिंता नहीं है अपने राजनीतिक उठा-पटक की चिंता है, ये दुर्भाग्य है देश का।
आदरणीय सभापति जी,
आज मैं बाली में था जी20 देश के समूह डिजिटल इंडिया इनको समझने के लिए लड़ाई करते थे। Success को पूरी दुनिया ने प्रभावित किया है डिजिटल लेनदेन में आज हिन्दुस्तान दुनिया का लीडर बना हुआ है।
आदरणीय सभापति जी,
हमें खुशी है आज 100 करोड़ से ज्यादा मोबाइल फोन मेरे देशवासियों के हाथ में है।
आदरणीय सभापति जी,
एक समय था हम मोबाइल इंपोर्ट करते थे आज गर्व है मेरा देश मोबाइल एक्सपोर्ट कर रहा है। 5जी हो, AI हो, IOT हो उस तकनीक को आज देश बहुत तेज गति से अपना रहा है, उसका विस्तार कर रहा है।
ड्रोन, इसका इस्तेमाल सामान्य जीवन में हो, सामान्य नागरिक की भलाई हो। हमने पॉलिसी में वो बदलाव किया और दवाइयां दूर से दूर इलाकों में ड्रोन से पहुंचाने का काम आज मेरे देश में हो रहा है। Science और Technology के माध्यमों को आज खेत में मेरा किसान ड्रोन की ट्रेनिंग लेकर के खेती में ड्रोन का क्या उपयोग हो, आज मेरे गांव में दिखाई दे रहा है। जियो स्पेशल सेक्टर में हमने दरवाजे खोल दिये। ड्रोन के लिए एक पूरा नया विकास का विस्तार करने का अवसर हमने कर दिया। आज देश में UN जैसे लोग चर्चा करते हैं कि दुनिया में लोगों के पास अपने पास जमीन के घर के मालिकाना हक नहीं हैं। UN की चिंता है दुनिया। भारत ने ड्रोन की मदद से स्वामित्व योजना से गांव में घरों में उसका नक्शा और मालिकी हक देने का काम किया है। उसको कोर्ट कचहरी के चक्करों से और कभी घर बंद हो, कोई आकर कब्जा कर ना ले, सुरक्षा का एहसास दिया है। हमने टेक्नोलॉजी का भरपूर प्रयास common man के लिए करने की दिशा में सफलता पाई है।
आज देश टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में आधुनिक विकसित भारत के सपने में उसका महात्म्य है हम समझते हैं और इसलिए human resource development, innovation, इसका महात्म्य बहुत है और इसलिए दुनिया की एकमात्र forensic science university हमारे देश में है। हमने गतिशक्ति university बनाकर के infrastructure की दुनिया में एक नई पहल की है। हमने energy university बनाकर के आज देश renewable energy के क्षेत्र में एक नया jump लगाए, अभी से हमारे नौजवान तैयार हो, उस दिशा में हम कार्य कर रहे हैं। हमारे देश में Technocrat की तरफ, engineers की तरफ, science की तरफ नफरत करने में, कांग्रेस ने अपने शासन काल में कोई कमी नहीं रखी है और science and technology को सम्मान देने में हमारे कार्यकाल में कोई कमी नहीं रही है, ये हमारा रास्ता है।
आदरणीय सभापति जी,
यहां रोजगार की भी चर्चा हुई, मैं हैरान हूँ कि जो अपने आपको सबसे लंबे समय तक सार्वजनिक जीवन का दावा करते हैं, इनको ये मालूम नहीं है कि नौकरी और रोजगार में फर्क होता है। जिनको नौकरी और रोजगार का फर्क समझ नहीं है, वो हमें उपदेश दे रहे हैं।
आदरणीय सभापति जी,
नए-नए नैरेटिव गढ़ने के लिए आधी अधूरी चीजों को पकड़कर झूठ फैलाने के प्रयास हो रहे हैं। बीते 9 वर्षों में अर्थव्यवस्थाओं का जो विस्तार हुआ है, नए सैक्टरर्स में रोजगार की नई संभावनाएं बढ़ी हैं। आज ग्रीन इकोनॉमी में देश जिस प्रकार से आगे बढ़ रहा है उसे ग्रीन जॉब्स की बहुत बड़ी संभावनाएं धरती पर उतारकर के दिखाई है और और अधिक संभावनाएं बनी हुई हैं। डिजिटल इंडिया के विस्तार से डिजिटल इकोनॉमी, उसका भी एक नया क्षेत्र आज सर्विस सेक्टर में डिजिटल इंडिया एक नई बुलंदी पर हैं। पांच लाख कॉमन सर्विस सेंटर, गांव के अंदर एक-एक कॉमन सर्विस सेंटर में दो-दो, पांच-पांच लोग रोजी-रोटी कमाते हैं और दूर से दूर जंगलों के छोटे-छोटे गांव में भी कॉमन सर्विस सेंटर में आज हमारे देश की आवश्यक सेवाएं गांव के लोगों को एक बटन पर उपलब्ध हों, ये व्यवस्था हुई है। डिजिटल इकोनॉमी ने अनेक नए रोजगार की संभावनाएं पैदा की हैं।
आदरणीय सभापति जी,
90 हजार रजिस्टर्ड र्स्टाटअप, इसने भी रोजगार के नए द्वार खोले हैं। अप्रैल से नवंबर, 2022 के दौरान ईपीएफओ पे-रोल में एक करोड़ से अधिक लोग जोड़े गए हैं, एक करोड़ से अधिक लोग।
आदरणीय सभापति जी,
आत्मनिर्भर भारत रोजगार योजना इसके जरिये 60 लाख से अधिक नए कर्मचारियों का लाभ हुआ है। आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत हमने अपने उद्यमियों के लिए स्पेस, डिफेंस, ड्रोन, माइनिंग, कोल, अनेक क्षेत्रों को खोला है जिसके कारण रोजगार की संभावनाओं में नई गति आई है। और देखिये हमारे नौजवानों ने इन सारे कदमों का आगे आकर के अवसर लिया, उठाया है उसका फायदा।
आदरणीय सभापति जी,
रक्षा के क्षेत्र में ये देश आत्मनिर्भर बनें, ये देश के लिए बहुत आवश्यक है। मुझे खुशी है कि रक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर का मिशन लेकर के हम चले। आज साढ़े तीन सौ से ज्यादा निजी कंपनियां रक्षा के क्षेत्र में आई है और करीब-करीब एक लाख करोड़ रुपये का एक्सपोर्ट रक्षा के क्षेत्र में मेरा देश कर रहा है और अभूतपूर्व रोजगार इस क्षेत्र में भी पैदा हुए हैं।
आदरणीय सभापति जी,
रिटेल से लेकर के टूरिज्म तक हर सेक्टर का विस्तार हुआ है। खादी और ग्रामोद्योग, महात्मा गांधी के साथ जो व्यवस्था जुड़ी हुई है, खादी ग्रामोद्योग को भी डुबो दिया था। आजादी के बाद सर्वाधिक, खादी ग्रामोद्योग के रिकॉर्ड तोड़ने का काम हमारे कालखंड में हुआ है। Infrastructure में हो रहा रिकॉर्ड निवेश चाहे रोयल का काम होता हो, रोड का काम होता हो, पोर्ट का काम होता हो, एयरपोर्ट का काम होता हो, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना बनती हों, ये सारी Infrastructure के काम, उसके लिए जो मटेरियल लगता है, उस इंडस्ट्री में रोजगार की संभावनाएं बढ़ी हैं। हर जगह निर्माण कार्य के अंदर मजदूर से लेकर मैकेनिक तक हर प्रकार के रोजगार की संभावनाएं, engineer से लेकर के श्रमिक तक हर किसी के लिए रोजगार के नए अवसर बने हैं और उसी के कारण youth विरोधी नीति लेकर के चले लोगों को आज youth नकार रहा है और वो youth की भलाई के लिए हम जिन नीतियों को लेकर के चले हैं, इसको आज देश स्वीकार कर रहा है।
आदरणीय सभापति जी,
यहां ये भी कहा गया…
आदरणीय सभापति जी,
यहां ये भी कहा गया कि सरकार की योजनाओं को उनके नामों को लेकर के आपत्ति उठाई। कुछ लोगों को ये भी परेशानी है कि नामों में कुछ संस्कृत touch है। बताइए इसकी भी परेशानी है।
आदरणीय सभापति जी,
मैंने किसी अखबार में पढ़ा था, मैंने कोई वेरीफाई तो नहीं किया है और वो रिपोर्ट कह रही थी 600 जितनी सरकारी योजनाएं सिर्फ गांधी-नेहरू परिवार के नाम पर हैं।
आदरणीय सभापति जी,
किसी कार्यक्रम में अगर नेहरू जी के नाम का उल्लेख नहीं हुआ तो कुछ लोगों के बाल खड़े हो जाते हैं। उनका लहु एकदम गर्म हो जाता है कि नेहरू जी का नाम क्यों नहीं दिया।
आदरणीय सभापति जी,
मुझे बहुत आश्चर्य होता है कि चलो भाई हमसे कभी छूट जाता होगा नेहरू जी का नाम और छूट जाता होता तो हम ठीक भी कर लेंगे क्योंकि वो देश के पहले प्रधानमंत्री थे। लेकिन मुझे ये समझ नहीं आता है कि उनकी पीढ़ी का कोई व्यक्ति नेहरू सरनेम रखने से डरता क्यों है? क्या शर्मिंदगी है नेहरू सरनेम रखने से? क्या शर्मिंदगी है? इतना बड़ा महान व्यक्तित्व अगर आपको मंजूर नहीं है, परिवार को मंजूर नहीं है और हमारा हिसाब मांगते रहते हो।
आदरणीय सभापति जी,
कुछ लोगों को समझना होगा ये सदियों पुराना देश सामान्य मानवी के पसीने और पुरुषार्थ से बना हुआ देश है, जन-जन की पीढ़ियों की परंपरा से बना हुआ देश है। ये देश किसी परिवार की जागीर नहीं है। हमने मेजर ध्यानचंद जी के नाम पर खेल रत्न का पुरस्कार कर दिया, अंडमान में नेताजी सुभाष के नाम पर, स्वराज के नाम पर हमने द्वीपों का नामकरण किया, हमें गर्व हो रहा है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस के योगदान के लिए देश गर्व करता है, हम गर्व करते हैं।
इतना ही नहीं, जो लोग आए दिन हमारे देश की सेना को नीचा दिखाने का मौका नहीं छोड़ते, हमने इन द्वीपों को परमवीर चक्र प्राप्त करने वाले सेनानियों के नाम कर दिया है। आने वाली सदियों तक कोई हिमालय की चोटी, एक एवरेस्ट व्यक्ति के नाम पर एवरेस्ट बन गई, मेरे द्वीप समूह मेरे परमवीर चक्र विजेता, मेरे देश के सेनानियों के नाम कर दिया ये हमारी श्रद्धा है, ये हमारी भक्ति है और उसको ले करके हम चलते हैं। और इससे आपको तकलीफ है और तकलीफ व्यक्त भी हो रही है। हरेक के तकलीफ व्यक्त करने के रास्ते अलग होंगे, हमारा रास्ता है सकारात्मक।
कभी-कभी- अब ये सदन है, एक प्रकार से राज्यों का महात्मय है। हम पर ऐसे भी आरोप लगाए जाते हैं कि हम राज्यों को परेशान करते हैं।
आदरणीय सभापति जी,
मैं लंबे अर्से तक राज्य का मुख्यमंत्री रह करके आया हूं। Federalism का क्या महत्व होता है वो भली भांति समझता हूं। उसको जी करके आया हूं। और इसलिए हमने cooperative competitive federalism पर बल दिया है। आओ हम स्पर्धा करें, हम आगे बढ़ें, हम सहयोग करें हम आगे बढें, उस दिशा में हम चले आएं। हमने हमारी नीतियों में national progress का भी ध्यान रखा है और regional aspiration को भी address किया है। National progress and regional aspiration इसका perfect combination हमारी नीतियों में दिखा है क्योंकि हम सब मिल करके 2047 तक एक विकसित भारत का सपना पूरा करने के लिए चल पड़े हैं।
लेकिन जो लोग आज विपक्ष में बैठे हैं उन्होंने तो राज्यों की अधिकारों की धज्जियां उड़ा दी थीं। जरा में कच्चा चिट्ठा आज खोलना चाहता हूं। जरा इतिहास उठा करके देख लीजिए, वो कौन पार्टी थी, वो लोग कौन सत्ता में बैठे थे जिन्होंने आर्टिकल 356 का सबसे ज्यादा दुरुपयोग किया। 90 बार चुनी हुई सरकारों को गिरा दिया। कौन हैं वो, कौन हैं जिन्होंने किया, कौन हैं जिन्होंने किया, कौन हैं जिन्होंने किया।
सम्मानीय सभापति जी,
एक प्रधानमंत्री ने आर्टिकल 356 का 50 बार उपयोग किया, आधी सेंचुरी कर दी। वो नाम है श्रीमती इंदिरा गांधी का। 50 बार सरकारों को गिरा दिया। केरल में आज जो लोग इनके साथ खड़े हैं जरा याद कर लीजिए थोड़ा वहां माइक लगा दीजिए। केरल में वामपंथी सरकार चुनी गई जिसे पंडित नेहरू पसंद नहीं करते थे। कुछ ही कालखंड के अंदर चुनी हुई पहली सरकार को घर भेज दिया। आज आप वहां खड़े हैं, आपके साथ क्या हुआ था जरा याद कीजिए।
आदरणीय सभापति जी,
जरा डीएमके के मित्रों को भी बताता हूं। तमिलनाडु में एमजीआर और करुणानिधि जैसे दिग्गजों की सरकारें, उन सरकारों को भी इन्हीं कांग्रेस वालों ने बर्खास्त कर दिया था। एमजीआर की आत्मा देखती होगी आप कहां खड़े हो। यहां पर पीछे बैठे हैं इस सदन के वरिष्ठ सदस्य और जिनको मैं हमेशा एक आदरणीय नेता मानता हूं, श्रीमान शरद पवार जी। 1980 में शरद पवार जी की आयु 35-40 साल की थी। एक नौजवान मुख्यमंत्री मां की सेवा करने के लिए निकला था, उनकी सरकार को भी गिरा दिया गया था, आज वो वहां हैं।
हर क्षेत्रीय नेता को उन्होंने परेशान किया और एनटीआर, एनटीआर के साथ क्या किया। यहां कुछ लोग आज कपड़े बदले होंगे, नाम बदला होगा, ज्योतिषियों की सूचना के अनुसार नाम बदला होगा। लेकिन कभी वो भी उनके साथ थे। उन एनटीआर की सरकार को और वो तब, वो तबियत के लिए अमेरिका गए थे, अपनी हेल्थ के लिए गए थे, आपने एनटीआर की सरकार को गिराने का प्रयास किया। ये कांग्रेस की राजनीति का स्तर था।
आदरणीय सभापति जी,
अखबार निकाल कर देख लीजिए, हर अखबार लिखता था कि राजभवनों को कांग्रेस के दफ्तर बना दिए गए थे, कांग्रेस के हेड क्वार्टर बना दिए गए। 2005 में झारखंड में एनडीए के पास ज्यादा सीटें थीं लेकिन गवर्नर ने यूपीए को शपथ के लिए बुला लिया था। 1982 में हरियाणा में भाजपा और देवीलाल के पास pre poll उनका एग्रीमेंट था, उसके बावजूद भी गवर्नर ने कांग्रेस की सरकार के लिए निमंत्रण दिया था। ये कांग्रेस के past और आज-आज देश को गुमराह करने की बातें कर रहे हैं।
आदरणीय सभापति जी,
मैं इस बात को जानना चाहता हूं, मैं एक गंभीर विषय की ओर अब ध्यान देना भी चाहता हूं। महत्वपूर्ण विषयों को मैंने स्पर्श किया है और आज देश में आर्थिक नीतियों की जिनको समझ नहीं है, जो 24 घंटे राजनीति के सिवाय कुछ सोचते नहीं हैं, जो सत्ता के खेल खेलना यही जिनको सार्वजनिक जीवन का काम दिखता है, उन्होंने अर्थनीति को अनर्थनीति में परिवर्तित कर दिया है।
मैं उनको चेतावनी देना चाहता हूं और मैं इस सदन की गंभीरता के साथ उनसे कहना चाहता हूं कि अपने respective state को जाकर समझाएं कि ये गलत रास्ते पर न चले जाएं। हमारे पड़ोस के देशों का हाल देख रहे हैं कि वहां पर क्या हाल हुआ है। अनाप-शनाप कर्ज ले करके किस प्रकार से देशों को डुबो दिया गया। आज हमारे देश में भी तत्कालीन लाभ के लिए अगर भुगतान करेगी तो आने वाली पीढ़ी करेगी, हम तो कर्ज करो, जीपीओ वाला खेल, आने वाला देखेगा, ये कुछ राज्यों ने अपनाया है। वो उनका तो तबाह कर देंगे देश को भी बर्बाद कर देंगे।
अब देश, अब कर्ज के तले दबते जा रहे हैं। ये देश आज दुनिया में कोई उनको कर्ज देने के लिए तैयार नहीं है, ये मुसीबतों से गुजर रहे हैं।
मैं राजनीतिक, वैचारिक मतभेद हो सकते हैं, दलों के विषय में एक-दूसरे के प्रति शिकायतें थोड़ी हो सकती हैं, लेकिन देश की आर्थिक सेहत के साथ खिलवाड़ मत कीजिए। आप ऐसा कोई पाप मत कीजिए जो आपके बच्चों के अधिकारों को छीन ले और आज अपना मौज कर लें और बच्चों के नसीब में बर्बादी छोड़कर चले जाएं, ऐसा करके न जाएं। आज आपको पॉलिटीकली …मैंने तो देखा एक मुख्यमंत्री ने बयान दिया कि भई अब ठीक है मैं निर्णय कर रहा, अभी मुसीबत मुझे तो आएगी 2030-32 के बाद आएगी, जो आएगा वो भुगतेगा। क्या कोई देश ऐसे लता है क्या। लेकिन ये जो युक्ति बन रही है वो बहुत चिंता का विषय है।
आदरणीय सभापति जी,
देश की आर्थिक सेहत के लिए राज्यों ने भी अपनी आर्थिक सेहत के संबंध में discipline का रास्ता चुनना पड़ेगा और तभी जा करके राज्य भी इस विकास की यात्रा का लाभ ले पाएंगे और उनके राज्यों के नागरिकों का भला करने में हमें भी सुविधा हो जाएगी, ताकि हम उन तक लाभ पहुंचाना चाहते हैं।
आदरणीय सभापति जी,
2047 में ये देश विकसित भारत में ये हम सबका संकल्प है, 140 करोड़ देशवासियों का संकल्प। अब देश पीछे मुड़ करके देखने को तैयार नहीं है, देश लंबी छलांग मारने को तैयार है। जिनकी दो वक्त की रोटी का सपना था उसको आपने address नहीं किया, हमने उसको address किया है। जिसको सामाजिक न्याय की अपेक्षा थी आपने address नहीं किया, हमने address किया है। जिन अक्सर अवसरों को तलाशता था, उन अवसरों को उपलब्ध कराने के लिए हमने अनेक कदम उठाए हैं और आजाद भारत का जो सपना है उस सपने को पूरा करने के लिए हम संकल्पबद्ध हो करके चलें,
और आदरणीय सभापति जी,
देश देख रहा है, एक अकेला कितनों को भारी पड़ रहा है। अरे नारे बोलने के लिए भी उनको डबल करना पड़ता है। आदरणीय सभापति जी, मैं conviction के कारण चला हूं। देश के लिए जीता हूं, देश के लिए कुछ करने के लिए निकला हुआ हूं। और इसलिए ये राजनीतिक खेल खेलने वाले लोग, उनके अंदर वो हौसला नहीं है, वो ढूंढ रहे हैं बचने का रास्ता खोज रहे हैं।
आदरणीय सभापति जी,
राष्ट्रपति जी के उम्दा भाषण को, राष्ट्रपति जी के मार्गदर्शक भाषण को, राष्ट्रपति जी के प्रेरक भाषण को इस सदन के अंदर अभिनंदन करते हुए, धन्यवाद करते हुए, आपका भी आभार व्यक्त करते हुए अपनी बात को समाप्त करता हूं।